-1-
दूरियाँ
मज़दूर,
मजबूर है...!
मालिक,
मग़रूर है...!
दौलत के नशे में चूर है!
इसीलिए
मज़दूर से दूर है!
-2-
नशा
दौलत में-
‘शान’ नहीं,
‘नशा’ है...!
‘नशा’ में-
‘नाश’ है...!
नशेड़ी,
एक चलायमान
लाश है...!
-जितेन्द्र ‘जौहर’
-जितेन्द्र ‘जौहर’
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ReplyDeleteइतनी छोटी-छोटी पंक्तियों में आपने तो बहोत कुछ कह दिया.............
ReplyDeleteमैं इसकी तारीफ कैसे करूँ...................मैं तो अभी तारीफ करने लायक हुआ ही नहीं हूँ.
फिर भी ये कहूँगा ............बहोत सुंदर
जीतेन्द्र जी...
ReplyDeleteसूक्ष्म विश्लेषण को सटीक सूक्ष्मिकाओं में प्रस्तुत किया है आपने...दौलत होना बुरा नहीं.. उसका नशा होना बुरा है ..नाश है... और उस नशे में डूबा हुआ नशेड़ी ..चलती फिरती लाश है... संवेदनहीन..करुनाविहीन ..
अरे वाह जौहर भाई क्या खूब लिखा है....
ReplyDeleteइससे कम शब्दों में कोई अपने भाव नहीं कह सकता..
वाह...
अपनी शर्म धोने अब कहाँ जायेंगे ??? ...
जौहर जी,
ReplyDeleteरहीम दास जी के दोहे याद आ गए जो देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर जैसे होते है. गहरे भाव इन क्षणिकाओं को बड़ा बना रहे है.
जौहर साहब! ये सिर्फ शब्दों का जौहर नहीं, शब्दों के साथ साथ ईमनदार भावनाओं और सूक्ष्म अनुभूतियों का जौहर भी है.. ईश्वर यह जौहर बनाए रखे!!
ReplyDeleteजौहर साहब शब्दों से खेलना कोई आपसे सीखे...भाई वाह...छोटे छोटे शब्दों से जादू जगा दिया है आपने...विलक्षण लेखन है आपका...बधाई.
ReplyDeleteनीरज
आप चाहे इन्हें सूक्ष्मिकाएं कहें मगर इनकी चोट तो सूक्ष्म नहीं है. इन्होंने गंभीर घाव किये हैं व्यवस्था पर और शायद समाज पर भी. पढ़ने में ये कम समय लेती हैं परन्तु पढ़ने के बाद मनन करने पर मजबूर करती हैं. न्यूनतम शब्दों में प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteजितेंद्र भाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ब्लाग है। बहुत सारे सुन्दर widget भी आपने जोडे हैं। रचनाएं तो सुन्दर हैं ही।
हो सके तो जौहरवाणी के नीचे से अपनी तस्वीर की जगह थोड़ा बदल दीजीए।
इस सुन्दर ब्लाग और सुन्दर रचनाओं के लिए बधाई।
सादर
अनमोल
aazaadnazm.blogspot.com
खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteजौहर जी , आपका ब्लॉग आपके जौहर से भरा पड़ा है . आपकी रचनाएँ एक अलग सी , .प्रभाव डालती हुई , मन को छूती हुई सी है .... अच्छा लग रहा है आपको पढ़ना . मेरी शुभकामनाएं कुबूल करें ..
ReplyDeleteछोटे छोटे शब्दों से जादू जगा दिया है आपने..
ReplyDeleteशब्दों से खेलने का आपका जौहर...ओह !!!!
ReplyDeleteलाजवाब !!!
संक्षिप्त शब्दों में गहरी सीख और चेतावनी दे दी आपने...
अति सार्थक व प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
''nashedi ek jinda laash hai '' shandar prastuti !
ReplyDeleteबढ़िया..
ReplyDeleteJOHAAR VANI main aakr achcha laga,
ReplyDeleteMajdur ki majburi or malik ki magruri ko mahaj chand shabdon main byan kr gaye aap,jo ki prashansniy hai ...........
abhaar.
बहुत खूब जोहर भाई .. क्षणिकाएं छोटी जरूर हैं मगर बहुत लम्बी बात कह गयी हैं ... बहुत गहरी बात लिख गयीं हैं ... ....
ReplyDeleteबहुत गहन बात ...शब्दों का चमत्कार
ReplyDeleteअनूभूति- अभिव्यक्ति व शब्द-टंकार का अनूठा संगम !
ReplyDeleteसुधा भार्गव
subharga@gmail.com
sudhashilp.blogspot.com
baalshilp.blogspot.com
AAPNE GAGAR MEIN SAGAR BHAR DIYA HAI . BADHAEE.
ReplyDeletebehad achchi lagi.
ReplyDeleteGagr mein sagar hai.Thanks.Plz. visit my blog.
ReplyDelete... bahut sundar ... prasanshaneey !!!
ReplyDeleteपहले तो मेरे "विचार" पर आपकी टिप्पणी फिर आपकी ये सूक्ष्मिकाएं पढकर खेरा जी की ये पंक्तियां याद आ गईं "Winners don't do different things, they do the things differently."
ReplyDeleteअर्थात् जीतने वाला, यानी जीतेन्द्र, अलग काम नहीं करते, वे हर काम अलग ढंग से कर, यानी जौहर, दिखाते हैं।
दौलत में
ReplyDeleteशान नहीं
नशा है
नशा में नाश है
वाह , जौहर जी, शब्दों के साथ अच्छा खेला है आपने...इस खेल में एक धारदार कविता उभर कर सामने आई है।...बधाई।
छोटी रचना है लेकिन सीधे दिल में उतरने वाली है |
ReplyDeleteकमाल कर दिया भाई आपके शब्दों ने .....सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteचलते -चलते पर आपका स्वागत है ....
गहन भावों की सुंदर अभिव्यक्ति मन को छू जाती है ।
ReplyDeleteदीप्ति परमार
शान में नशा
ReplyDeleteनशा में नाश
अच्छा व्यतिक्रम...
यानी
बात में ताब है
आब ही आब है
आप सभी का आभार कि आपने अपने अमूल्य पल इस ब्लॉग को दिए...और प्रतिक्रिया भी...सद्भाव बनाए रखें...तथास्तु!
ReplyDelete@ रविकांत अनमोल जी...मैं उसे परिवर्तित करने का प्रयास कर चुका हूँ, लेकिन सम्यक् जानकारी के अभाव में कर नहीं पाया...पुनः कोशिश करूँगा!
@ डॉ. ललित पण्ड्या जी...आपका फोन-संवाद भी सुखद लगा!
आदर्णीय जितेन्द्र जी , सबसे पहले आपका आभार.
ReplyDeleteआपने वाकई गागर में सागर भर दिया है.शुभकामनायें.
कम शब्दों में बहुत ही सुन्दर रचना. शुभकामनाएं
ReplyDeleteकुछ शब्दों में गहन अभिव्यक्ति ..कमाल है !आभार
ReplyDeleteमेरे गीत पर आपके दिए कमेन्ट के बारे में दिया गया जवाब यहाँ भी दे रहा हूँ !
ReplyDelete@ जितेन्द्र जौहर,
आज की बहतरीन प्रतिक्रिया दी है आपने ...निस्संदेह मुझे आपने प्रोत्साहित किया है ! आपका आभार !
मैं गीत शिल्प का ज्ञाता बिलकुल नहीं हूँ और न ही तकनीक की कोई समझ है, मगर गीत सिर्फ उन क्षणों में ही लिख पाया हूँ जब अपने आप कलम उठ गयी ! चाहते हुए शायद ही कभी गीत लिखा हो !
हिंदी ब्लॉग जगत में गीत के जानकार, कभी एक दूसरे को प्रोत्साहित नहीं करते ! अगर प्रोत्साहन देते हैं तो सिर्फ अपनी प्रशंसा के बदले में, वाह वाह करते हैं, वह भी चुनिन्दा ब्लाग्स पर जो, उनके अपने मित्रों के हैं !
प्रोत्साहन के अभाव में बेहद अच्छे कवि और नवोदित लेखक दम तोड़ते नज़र आते हैं !!
मैंने कभी अपनी रचना आज तक किसी पत्रिका में नहीं भेजी सो छपने का सवाल ही पैदा नहीं होता !
योगेन्द्र भाई मित्रों में से हैं बस इतना ही !
आपका दुबारा आभार !
भाई सतीश सक्सेना जी,
ReplyDeleteधन्यवाद...!
मम् प्रतिक्रिया-प्रसूत आपकी राय से अवगत होना अच्छा लगा! प्रसंगतः कहना चाहूँगा कि जिस ब्लॉग पर मुझे जैसी रचना नज़र आती है, आदतन मैं वैसा ही नज़रिया वहाँ प्रकट कर देता हूँ...बस्स्स्स्स्स!
शायद आप सहमत होंगे कि कोई श्रेष्ठ रचना किसी समीक्षक/विशेषज्ञ की कृपा-दृष्टि की मुखापेक्षी नहीं होती है...वह अपना स्थान स्वयं बना लेती है...आप पत्रिकाओं की ओर भी रुख करें...आपकी रचनाओं को मान मिलेगा! लीजिए... प्रथम प्रस्ताव प्रस्तुत है आपके लिए:
इस विज्ञप्ति को पढ़कर रचनाएँ भेजें/भिजवाएँ-
..................................
‘मुक्तक विशेषांक’ हेतु रचनाएँ आमंत्रित-
देश की चर्चित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ का आगामी एक अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ होगा जिसके अतिथि संपादक होंगे सुपरिचित कवि जितेन्द्र ‘जौहर’। उक्त विशेषांक हेतु आपके विविधवर्णी (सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षिक, देशभक्ति, पर्व-त्योहार, पर्यावरण, श्रृंगार, हास्य-व्यंग्य, आदि अन्यानेक विषयों/ भावों) पर केन्द्रित मुक्तक/रुबाई/कत्अ एवं तद्विषयक सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण आलेख सादर आमंत्रित हैं।
इस संग्रह का हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम 10-12 और अधिकतम 20-22 मुक्तक भेजे जा सकते हैं।
लेखकों-कवियों के साथ ही, सुधी-शोधी पाठकगण भी ज्ञात / अज्ञात / सुज्ञात लेखकों के चर्चित अथवा भूले-बिसरे मुक्तक/रुबाइयात/कत्आत भेजकर ‘सरस्वती सुमन’ के इस दस्तावेजी ‘विशेषांक’ में सहभागी बन सकते हैं। प्रेषक का नाम ‘प्रस्तुतकर्ता’ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रेषक अपना पूरा नाम व पता (फोन नं. सहित) अवश्य लिखें।
इस विशेषांक में एक विशेष स्तम्भ ‘अनिवासी भारतीयों के मुक्तक’ (यदि उसके लिए स्तरीय सामग्री यथासमय मिल सकी) भी प्रकाशित करने की योजना है।
भावी शोधार्थियों की सुविधा के लिए मुक्तक संग्रहों की संक्षिप्त समीक्षा सहित संदर्भ-सूची तैयार करने का कार्य भी प्रगति पर है।इसमें शामिल होने के लिए कविगण अपने प्रकाशित मुक्तक/रुबाई के संग्रह की प्रति प्रेषित करें! प्रति के साथ समीक्षा भी भेजी जा सकती है।
प्रेषित सामग्री के साथ फोटो एवं परिचय भी संलग्न करें। समस्त सामग्री केवल डाक या कुरियर द्वारा (ई-मेल से नहीं) निम्न पते पर अति शीघ्र भेजें-
जितेन्द्र ‘जौहर’
(अतिथि संपादक ‘सरस्वती सुमन’)
IR-13/6, रेणुसागर,
सोनभद्र (उ.प्र.) 231218.
मोबा.# : +91 9450320472
ईमेल का पता : jjauharpoet@gmail.com
यहाँ भी मौजूद : jitendrajauhar.blogspot.com
नशा और शान के बीच गहरा संबंध है।
ReplyDeleteजितेन्द्र जी , बहुत सुन्दर है आपकी क्षणिकाएं!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका आभार !
बहुत ही अच्छी क्षणिकाएं हैं...
ReplyDeleteगागर में सागर - बेमिशाल
ReplyDeleteजीतेन्द्र जी..ओह क्या खूबसूरत पंक्तियाँ निकाली है आपने...वाह :)
ReplyDeleteजितेन्द्र जी ,
ReplyDeleteआपकी क्षणिकाएं बड़ी मारक हैं , सीधे दिल पर चोट करती हैं !
ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आप सभी की आत्मीयता के लिए ...हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteसमीक्षक महोदय,
ReplyDeleteआपकी दोनों रचनाएं पढ़ी।
एक रचना मजदूर और मालिक को लेकर लिखी गई है। इस तरह की क्षणिकाएं काफी पहले अच्छी लगती थी। दूसरी रचना नशे को लेकर लिखी गई है। इस रचना को पढ़कर गायत्री परिवार का स्लोगन याद आ रहा है-नशा नाश की जड़ है भाई, फल इसका अति दुखदायी।
दोनों ही रचना काफी कमजोर है।
आप समीक्षक है। आप अपने सुझाव को काफी कीमती भी मानते हैं। उम्मीद है दूसरे को सुझाव पर भी अमल करते हुए कोई धारधार रचना लिखेंगे जिसे सर्वकालिक रचना माना जाए।
आशा है आपका स्वास्थ्य ठीक होगा।
Jitendra,
ReplyDelete__I truly thank you for your visits to my blog and your generous comments there, and too your echo left at Bicando's blog. I'm glad you have enjoyed the thoughts... that I have scribbled into haiku, and you are always welcome!
__Soo-kri-ah! _m
@ प्रिय श्री राजकुमार सोनी जी,
ReplyDeleteनमस्कारम्!
आप मेरे ब्लॉग (यानी...मेरे घर) आये मेहमान हैं। भले ही ‘आखर कलश’ की निम्नांकित लिंक-
http://aakharkalash.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html#comments
-पर घटित घटना से प्रसूत आपकी स्वाभविक भड़ास/खुन्नस ने आपके कराम्बुजों में चन्द्रहास खड्ग-सी थमा दी है...तथापि आप हैं तो मेरे मेहमान ही! अतः भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि देवो भव’ की सुन्दर व आदर्श परम्परा में समग्र निष्ठा दर्शाते हुए... मैं आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ!
अब रही बात आपकी उपर्युक्त टिप्पणी की, तो मैं नहीं समझता कि उस बिन्दु पर मुझे बहुत कुछ कहने की ज़रूरत है; वैसे भी शब्दापव्यियता मेरा शग़ल नहीं। (स्वयं इन संदर्भित क्षणिकाओं में मैंने न्यूनतम शब्दों में अपनी बात कहने की कोशिश की है।) शब्द की अपनी एक अर्थवत्ता होती है... एक गरिमा होती है! कब-कहाँ-कैसे-क्यों और कितने शब्द ख़र्च करने हैं...भली-भाँति समझता हूँ।
कोई भी रचना सिर्फ़ तब तक ही रचनाकार की होती है, जब तक वह पाठकों/श्रोताओं तक नहीं पहुँच जाती! पाठकों तक पहुँचते ही वह समाज की सम्पत्ति बन जाती है। अब हर पाठक उसको अपनी-अपनी भावयित्री-धारयित्री-कारयित्री प्रतिभा के अनुकूल उसका अर्थ-अनर्थ/ स्मरण-विस्मरण/ उपयोग-सदुपयोग-दुरुपयोग आदि कुछ भी कर सकता है। एक पाठक के रूप में आपका भी पूर्ण अधिकार सुरक्षित है...और होना भी चाहिए।
लेकिन...सिर्फ़ दो प्रमुख बातें आपकी इस टिप्पणी पर सवालिया निशान लगा रही हैं-
१. यह कि ‘क्रोध’ के ‘क्रोड़’ से उद्भूत आपकी यह टिप्पणी स्वस्थ मन की ‘संतान’ नहीं है! वस्तुतः ‘आखर कलश’ वाली एक ‘तिलमिलाती हुई खुन्नस’ ने स्वभावतः अपना निकास-मार्ग तलाशा है।
२. यह कि आप इस टिप्पणी के माध्यम से ब्लॉगिंग-परिक्षेत्र में एक अस्वस्थ एवं सर्वथा अनुचित परम्परा के वाहक बन गये हैं।
........................
‘जौहरवाणी’ के विद्वान पाठकगण ‘आखर कलश’ पर प्रस्तुत श्री गोविन्द गुलशन जी की ग़ज़लों वाली उपरांकित लिंक पर स्वयं क्लिक करके असलियत से वाक़िफ़ हो जाएँगे।
Dear Magyar,
ReplyDeleteThanks from the core of my heart for your kind & prompt reciprocation... as well as your word of 'Welcome' for my further visit to your fantastic blog.
It goes without saying that I shall keep visiting you from time to time as you have got a lot of literary stuff of my flavour. Your picturesque creation is,indeed, full of modern symbols & imagery
Dear Magyar,
ReplyDeleteOh...! I am sorry. The last part of your comment (i.e. " Soo-kri-ah") inadvertently went un-noticed.
Perhaps you wanted to say 'Shukriya' (the popular Urdu word for 'Thanks') to me. That's a beautiful way of honouring someone by using a word from one of his native languages.
Here I would love to tell you that Hindi is my lovely mother tongue which has the word 'Dhanyavaad' synonymous with English 'Thanks / Thank you'.
Thanks & regards,
Jitendra Jauhar
< jjauharpoet@gmail.com >
ऊपर श्री राजकुमार सोनी को दिए गये जवाब में प्रयुक्त ‘शब्दापव्यियता’ की जगह ‘शब्दापव्ययिता’ पढ़ा जाए...धन्यवाद!
ReplyDeleteमुझे खुशी है कि आपकी टिप्पणी “जो तो को काँटा बुवे ताहि बोई तू फूल” की भावना के अनुरूप ही है. एक ब्लॉग पर हुए किसी प्रकार के विवाद को अन्यत्र नहीं घसीटना चाहिए. मुझे आशा है कि इस विषय पर सद्भावना से गहन चिंतन करने की आवश्यकता है.
ReplyDeleteरामवृक्ष बेनीपुरी,हजारी प्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह, मैनेजर पांडेय और परमानंद श्रीवास्तव जी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले समीक्षक महोदय
ReplyDeleteआपकी तारीफ में संबोधन थोड़ा लंबा हो गया है और इस चक्कर में मैं अल्प विराम और पूर्ण विराम का ध्यान नहीं रख पाया
खैर... मैं नहीं भी रखूंगा तो क्या हुआ। अभी एक भाषा वैज्ञानिक आएंगे और भाषा सुधराने का सुझाव देंगे। हम उनसे कुछ सीख लेंगे।
क्या है समीक्षक महोदय,
जब नामवर सिंह दूसरों की रचनाओं पर मीन-मेख निकालते हैं तो उन्हें बड़ा मजा आता है। किसी ने यदि उनकी रचना को कमजोर बता दिया तो बुरा लग जाता है। यह सही है कि मेरा आपसे आखर कलश पर विवाद हुआ लेकिन उसी विवाद के बाद तो मैंने आपको पढ़ना और जानना चालू किया।
इधर जैसे-जैसे आपको तलाशता जा रहा हूं आपकी पोल खुलती जा रही है।
सबसे बड़ी पोल तो यह है बंधुवर कि आपको तोपचंदी का भ्रम हो गया है। इसी भ्रम ने आपको आत्ममुग्ध बना डाला है।
ज्यादा आत्ममुग्धता अच्छी नहीं होती बंधुवर... आत्ममुग्धता की रस्सी से मैंने कई लोगों को फांसी लगाते हुए देखा है।
हिन्दी के कठिन शब्दों को अपने जेब में ठूंसकर चलने से यह जरूरी नहीं है कि कोई अच्छा इंसान भी हो जाता होगा।
मेरे हिसाब से आपको पहले बेहतर इंसान बनने की जरूरत है।
एक तो आप मुझे मेहमान कहते हैं और फिर दूसरी ओर उस मेहमान की नाराजगी को क्रोध का कोड़ वगैरह जैसे शब्दों से नवाजते हैं। क्या यह मेहमान की खातिर है। मैं तो यह स्वीकार ही करता हूं कि आखर कलश पर आपसे मेरा जो विवाद हुआ है उसके बाद मैं आपको खोज रहा हूं। मैं तो अब हर उस जगह पहुंचना चाहूंगा जहां-जहां आप लिखते-पढ़ते हैं।
भैय्ये आपने अपनी टिप्पणी में अपनी रचना को पाठक के हवाले वाली बात भी लिखी है। भाईसाहब जब रचना पाठक की हो गई तो फिर उसे पलकों पर बिठाने पर और उतारने का अधिकार भी तो पाठक को दो। गुलशनजी की रचनाओं पर तो मैंने यहीं किया था.. आपको ज्ञानचंद वाली टिप्पणी बुरी लग गई। अरे भाई साहब किसी समझदार आदमी को मूर्ख कहने उसे बुरा मानते हुए देखा था लेकिन यहां तो मैं पहली बार किसी समझदार आदमी को ज्ञानचंद कहने पर बुरा मानते हुए देख रहा हूं।
आप समझदार आदमी है। जरा समझदारी से काम लेते हुए यह जरूर विचार करें कि आपने जीवन में कितना लिखा-पढ़ा है। आपके कितने लिखे हुए पर आंदोलन हुआ है। क्या आपका लिखा हुआ बगैर कोई हलचल मचाए यूं ही चुपचाप चला जा रहा है।
आशा है आप ठीक होंगे।
आपसे तो अब बात होती रहेंगी।
सोनी जी को इतने अच्छे लेखन के लिए दाद देनी चाहिए. हम आज इनके कृतज्ञ हैं कि इन्होंने अपनी मधुर वाणी जानने का अवसर जो दिया है. आप स्वयं इतने बड़े विद्वान हैं कि कोई आपकी भाषा सुधारने की सोच ही नहीं सकता. आपकी तारीफ़ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. आपने हमें इतना आत्म-विभोर कर दिया है कि कोई भी “आत्म-मुग्ध हो कर आपके कथनानुसार फाँसी ले सकता है.” भगवान करे आपका यह विश्वास बना रहे. रही बात पोल खुलने कि तो मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जो व्यक्ति अपनी टांग से कपडा उठाता है वह स्वयं ही नंगा हो जाता है.
ReplyDeleteश्री राजकुमार सोनी जी,
ReplyDeleteनमस्कारम्!
पुनः स्वागत है आपका...हृदय के अन्तर्तम गह्वरों से! आते रहिएगा...प्लीज़! लेकिन...हे अतिथि... एक अनुरोध कर रहा हूँ कि आप तनिक अपनी ग़ुस्सा परे धकियाकर आएँ...तो आपको टिप्पणी लिखते हुए मज़ा आएगा...और मुझे पढ़ते हुए...है कि नहीं?
जौहर साहब,
ReplyDeleteलोग ट्रकों के पीछे लिखी हुई कविताओं पर शायद कम ही ध्यान देते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि यह कविताएं आम आदमी के ज्यादा करीब होती है। अक्सर ट्रकों के पीछे लिखा मिलता है-चमचों से सावधान।
मैं जब भी कोई टिप्पणी करता हूं एक भाषा का वैज्ञानिक अपना ज्ञान बघारने चला आता है।
चमचों से सावधान जौहर साहब।
बढिय़ा पोस्ट। दूरियां और नशा, दोनों उम्दा हैं।
ReplyDeleteगागर में सागर सी पंक्तियाँ. दोनों ही रचनाएँ अपने आपमें परिपक्व और मुकम्मल हैं. कही से कोई हल्कापन या कमी कम से कम मुझे तो नहीं लगी. शब्दों के साथ मनचाहे अंदाज़ में खेलना तो कोई जौहर साहब से सीखे. साथ ही रचनाएँ समसामयिक और सत्यान्वेषण करती प्रतीत होती है. इसका उदाहारह है दूसरी रचना. सीखने वालों के लिए इससे बेहतर मंच कोई और हो ही नहीं सकता.ये बात और है कि कोई यहाँ आकर भी कुछ ना सीखे, ये उसकी मति की कमी होगी. श्री जौहर साहब की रचनाओं में हल्कापन ढूँढने से भारी काम कोई हो ही नहीं सकता, उसके पश्चात् भी हल्कापन ढूँढने वाले को निराश ही होना पड़ेगा. आपकी इन रचनाओं की मैं दिल से भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ, हालाँकि मेरी प्रशंसा की मोहताज़ नहीं ये रचनाएँ. फिर भी रचनाओं के सम्मान में मेरे शब्द रुपी पुष्प अर्पित कर रहा हूँ.
ReplyDeleteएक बात और कि बात या समीक्षा या आलोचना अगर रचना की और वो भी तार्किक की जाए तो सही वर्ना वही टिपण्णी निरर्थक है और स्वयं को ही हल्का कहलवाती है. जो कि साहित्यिक परिवेश में नहीं रखी जा सकती. ये एक शाश्वत सत्य है. मैं एक बार पुनः श्री जौहर साहब को इन रचनाओं पर बधाई प्रेषित करता हूँ. साधुवाद ! नमन !
जो लोग ट्रकों के पीछे लिखा हुआ पढ़ कर अपना मनोरंजन करते हैं उनके विषय में तो मैं अधिक कुछ नहीं कह पाऊंगा क्योंकि उनकी नज़र में यही सर्वश्रेष्ठ साहित्य दर्शन है भले ही यह सड़क छाप क्यों न हो.
ReplyDeleteजौहर जी,
ReplyDeleteपहली मर्तबा आया हूँ. आता रहूँगा.
आशीष
---
नौकरी इज़ नौकरी!
यहाँ आना सौभाग्य है मेरा..
ReplyDelete.बहुत सुंदर मन-मोहक अभिव्यक्तियाँ पढ़ने को मिलीं...
आभार और बधाई आपको..
गीता .
जय हो
ReplyDeleteआपकी सदा विजय हो
ReplyDeleteतेरे विशाल नभ में सुख सूर्य का उदय हो
ReplyDeleteहे गदाधारी भीम
ReplyDeleteक्या आप जीवन भर चमचे ही बना रहना चाहेंगे। मेरे ख्याल से आपको फिल्मी लफंडरबाजी छोड़कर अपनी निजी पहचान बनाने के लिए कुछ करना चाहिए। समय बड़ा विकट है।
हे गदाधारी भीम
ReplyDeleteआजकल बजाज स्कूटर भी झुकाने या लात मारने के बाद चालू होता है।
तो श्रीमानजी ऐसे बुरे वक्त में बजाज स्कूटर का स्टेपनी बनने से क्या फायदा।
शात गद्दाधारी भीम शांत
ReplyDeleteश्रीमानजी
ReplyDeleteजिसे आप सड़क का साहित्य कहते हैं क्या उसमें बशीर साहब की रचनाएं भी शामिल होती है क्या ...
मैंने तो बशीर साहब की कई रचनाओं को ट्रकों के पीछे लिखा हुआ देखा है।
महोदय
ReplyDeleteहर आदमी के मनोरंजन का अपना तरीका होता है।
मुझे तो आपको क्रोधित देखकर भी आनन्द आ रहा है।
आप लगातार मेरा मनोरंजन ही कर रहे हैं।
हां... आप ही नहीं गौहर साहब का जौहर देखकर भी मैं मजे ही ले रहा हूं।
ReplyDeleteमुझे लगता है कि अब आप लोग अपनी टिप्पणी बाक्स बंद कर देंगे।
ReplyDeleteयदि आप ऐसा करेंगे तो मैं आपको बुजदिल समझूंगा।
अभी चलने दो भाई।
अरे हां...
ReplyDeleteजौहर साहब ने ब्लाग पर निरन्तर आते रहने का न्यौता भी दिया है।
अब किसी ने न्यौता दिया है तो आना ही पड़ेगा न छोटू
हिन्दी में एक मुहावरा है दाल-भात में मूसलचंद।
ReplyDeleteआप तय कर ले आप क्या है।
दाल है, भात है या मूसल है या चंद है।
मेरे ख्याल से आपको भी सुझाव देने में मजा आता है, इसलिए आपको भी ज्ञानचंद टू कहा जा सकता है।
आज के लिए इतना ही काफी है।
ReplyDeleteअभी तो मैं आपकी सेवा के लिए आता रहूंगा यदि आप लोगों ने टिप्पणियों के दरवाजे पर ताला नहीं लगाया तो।
एक बार फिर आपकी जय हो।
अरे हां..
ReplyDeleteजाते-जाते एक बात तो मैं पूछना भूल ही गया
क्या आप सड़क पर चलने वालों से नफरत करते है
क्या लोगों को सड़क पर चलने का हक नहीं है।
क्या आप हवा में ही उड़ते है।
आशा है कुछ प्रकाश डालेंगे।
जीतेन्द्र जी ,
ReplyDeleteआपकी सूक्ष्मिकाओं पर टिप्पणियों का पर्वत बनते देख अपनी एक रचना याद आ गयी... यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ..:) आनंद लीजिए उसका ...
अहम् तुष्ट करने को मानव
क्या क्या ढोंग रचाता है
धोखा देता 'स्वयं' को पहले
फिर जग को भरमाता है
झूठे चेहरे लगा लगा कर
बिना बात मुस्काता है
हीन भावना से बचने को
उपद्रव ढेर मचाता है
ढूंढ के कमियाँ दूजों में वह
गुण अपने गिनवाता है
मूर्ख बड़ा ये भी ना जाने
सत्य कहाँ छुप पाता है
चाह रहे ये , पाए प्रशंसा
खेल यूँ खूब रचाता है
दिखा के नीचा औरों को पर
खुद नीचा बन जाता है
ठेस जरा सी सह नहीं पाए
अहम् तुरंत उकसाता है
राई बराबर बात हो कोई
पर्वत वो बनवाता है
'स्वयं' जागृत हो जाता जब
'अहम्' टूटता जाता है
कोमल नम्र उदार "स्वयं' से
'अहम्' हारता जाता है.......
सादर
मुदिता
वह आदमी कायर होता है जो अपनी लड़ाई में बच्चों और महिलाओं को शामिल करता है।
ReplyDeleteकल ही किसी अखबार के एक कालम में यह बात छपी थी।
कालम का शीर्षक था-दीवारों पर लिखा है।
बात अच्छी लगी सोचा आप तक पहुंचा दूं।
“अहम तुष्ट करने को मानव क्या क्या ढोंग रचाता है
ReplyDeleteधोखा देता स्वयं को पहले फिर जग को भरमाता है.”
बड़ी सुन्दर और सामयिक रचना लगाई है आपने. इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत साधुवाद.
गागर में सागर भर दिया आपने. खूबसूरत
ReplyDeleteजिसे चम्मचगिरी की आदत लग जाती है उसे लाख समझाओ कि भैय्या इससे तु्म्हारी निजी पहचान को फर्क पड़ता है लेकिन वह नहीं मानता।
ReplyDeleteहे... भाषा के महान इंजीनियर.. बीच में टपकने की प्रवृति छोड़ दो।
और यदि पेट दर्द की शिकायत है तो किसी अच्छे चिकित्सक से सलाह लेकर दवाई खाओ भाई।
aap kee rchna ka prthm pthn kiya hai
ReplyDeletesundr abhivykti hai vishy ka chyn bhi sadhuvad ke yogy hai meri geetika me bhi ye vishy hain
dekh dault kee aise dikhavt n kr
aap ne pdha bhi hai
shilp me bdi khoobsoorti hai
ise nirntr bnaye rkhen
bdhai
जीतेन्द्र जी...
ReplyDeleteबहुत पहले एक रचना लिखी थी..आपके ब्लॉग पर विनम्रता को कायरता का जामा पहनाया जाते देख याद आ गयी ...कुछ लोग अभी भी उसी सदियों पुरानी पुरुष मानसिकता में जीते हैं जहाँ महिलाओं को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं थी ...लेकिन मैं स्वयं को स्वतंत्र मानती हूँ ऐसे किसी भी पूर्वाग्रह से...और जो मेरे विचार हैं.. उनको यहाँ आपके साथ बाँट कर प्रसन्नता हो रही है... ईश्वर आपकी यह कायरता ( ??? )बनाये रखे...
अंहकार मद चढ़ता जिसपर
दिखता उसे उजास न कोई
मैं ही मैं का बजता डंका
ध्वनि हृदय की उसमें खोयी
होते उत्पन्न कलुष विकार जब
रावण सम ज्ञानी मिट जाते
स्व-आदर के भ्रम में प्राणी
अहम् को अविरल पोषित पाते
ज्ञान भला है उस ज्ञानी का
झुकना करता जिसे न विचलित
सजग ,सहज और स्व-अनुभव ही
करता दिशा दिशा आलोकित........
चंद शब्दों में बड़ी गहरी बातें कही हैं..जैसे गागर में सागर हो...
ReplyDelete“ज्ञान भला है उस ज्ञानी का झुकना जिसे न करता विचलित” आपने सही कहा है मुदिता जी! जिस बेरी पर फल लगे हों वह झुक जाती है और जहां कोई फल नहीं लगता वह बेरी अकड़ कर सीधी खड़ी रहती है. मुझे प्रसन्नता और गर्व है कि आप भारत जैसे देश की बेटी हैं. आपने तो अपने ब्लॉग से इतर भी सुन्दर अभिव्यक्तियों की झड़ी सी लगा दी है. बहुत बहुत साधुवाद.
ReplyDeleteआदरणीय जीतेन्द्र जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत सुन्दर है आपकी क्षणिकाएं!
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
ReplyDeleteकहाँ खो गए हो जौहर साहेब! कुछ तो कहें आप भी.
ReplyDelete@ अश्वनी कुमार रॉय जी
ReplyDeleteहाज़िर हूँ...हुज़ूर! कहीं भी खोया नहीं हूँ! क्या कहूँ...क्या न कहूँ..?!
आपने क्या-क्या न सहा...! भगवान ने किस मिट्टी से बनाया है आपको...? आपकी सहनशीलता के लिए...साधुवाद!
जिसे ढालना सहज हो वह मिट्टी काम की होय
ReplyDeleteजो मिट्टी ढल न सके सो जग में न पूछे कोय
-एक स्वरचित दोहा
@ ललित शर्मा जी...हार्दिक स्वागत! अपने ब्लॉग का लिंक दीजिएगा प्लीज़!
ReplyDelete@ शिवम् मिश्रा जी...हार्दिक स्वागत...एकदम चुपके से आये आप...!
@ अश्विनी जी ...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने मेरे विचारों को सराहा और समर्थन दिया....आपका स्वरचित दोहा भी कमाल का है.. एक दम सटीक.....बधाई
इधर दो तीन दिन नेट की समस्या थी सो आप लोगों की सेवा में बंदा हाजिर नहीं हो पाया। आशा है अन्यथा नहीं लेंगे।
ReplyDeleteइस बीच मुझे पता चला कि आप लोग मुझे पानी पी-पीकर याद करते रहे। टिप्पणियां तो यहीं बता रही है। किसी ने पंचतंत्र की कहानी खोल ली तो किसी ने स्त्री विमर्श का मुद्दा उठाया। हां... एक महोदय ने तो तंग आकर गोस्वामी तुलसीदासजी को भी पीछे छोड़ दिया। बंधुवर दोहा और सरोठा लिखने लगे।
हे ईश्वर इन्हें माफ कर देना.. ये नहीं जानते कि अन्जाने में क्या कर रहे हैं।
अरे हां चमचेजी याद आया। आपने बीच में टपकना नहीं छोड़ा।
खैर मैं तो भूल ही गया था कि कोई पोंगली और पूंछ का मुहावरा शब्दकोशों में कैद है। शायद किसी ने ठीक ही कहा है- लोगों को तो बदला जा सकता है लेकिन प्रवृति नहीं बदली जा सकती है।
देश की नई महादेवी वर्मा को मेरा सलाम।
ReplyDeleteयकीन मानिए आपका दिल दुखाने का इरादा नहीं था मेरा। मैं स्त्री विरोधी नहीं हूं। दुख पहुंचा हो तो क्षमा चाहता हूं।
महादेवी की संज्ञा मैंने आपको इसलिए दी कि क्योंकि आप अच्छा लिखती है।
सरोठा को सुधार लीजिएगा भाषा वैज्ञानिकजी,
ReplyDeleteआखिर कुछ काम तो मुझे आपके लिए छोड़ना ही चाहिए
आप लोगों की आवाज थोड़ी कुंद पड़ती देखकर अच्छा नहीं लग रहा है।
ReplyDeleteडिप्रेशन का कंबल ओढ़ना अच्छा नहीं माना जाता।
@ राजकुमार सोनी जी
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत शुक्रिया ...आपने ‘महादेवी जी’ की संज्ञा देकर मेरा मान बढ़ाया ..आभारी हूँ.. किन्तु आपने मेरा लिखा पहले भी पढ़ा है ..इस लिंक पर आपकी टिप्पणी भी है-
http://roohshine-lovenlight.blogspot.com/2010/09/blog-post_17.html
तब आपको इस ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई थी कि मुझे ‘महादेवी जी’ की संज्ञा से नवाज़ा जाए ??? ....या यह भी आपका अपनी खिसियाहट छुपाने के लिए तंज़ करने का एक और तरीका है जो किसी पर भी किसी भी प्रकार का कोई असर छोड़ने में हमेशा नाकामयाब रहता है ..वैसे लोग मुझे अक्सर ‘झाँसी की रानी’ की संज्ञा देते हैं...भविष्य में शायद आपको भी इस ज्ञान की प्राप्ति हो जाए....यथासमय !!
...और जहाँ तक दुःख पहुँचाने की बात है... आप किंचित भी क्षोभ न करें... मुझे दुःख पहुँचा सके, अभी तक ऐसा कोई इस दुनिया में जन्मा ही नहीं, इसलिए क्षमाप्रार्थी न हों..आप स्त्री विरोधी नहीं है- जान कर खुशी हुई...किन्तु स्त्रियों को शायद दोयम दर्जे का मानते हैं...!
व्यक्तिगत मान - अपमान से ऊपर उठिए तभी एक अच्छे साहित्यकार की श्रेणी में आप आ पायेंगे ..एक मित्रवत सुझाव है..अन्यथा न लीजियेगा .
आपसे इस पटल पर यह मेरा पहला और अंतिम संवाद है ...!
आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
आदरणीय श्री सोनी जी,प्रणाम !
ReplyDeleteशायद मैं सबसे छोटा हूँ फिर भी छोटा मुह और बड़ी बात कह रहा हूँ... मुझे माफ़ कर दीजियेगा.. प्लीज़ !
प्यार और अमन की जंग में जिसने दिल हारा वो सब जीता. पर ये लड़ाई या जंग का मैदान नहीं है. ये एक बेहद संवेदनशील साहत्यिक मंच है, प्यार और अमन का. यहाँ आलोचनाएँ हो सकती हैं, मगर सिर्फ रचनाओं की. रचनाकार या किसी टिप्पणीकार की व्यक्तिगत नहीं. इस व्यग्तिगत आलोचना के घने कुहरे को हटाकर हम उस सत्यसम सूरज को रोशन करें जिसकी तलाश और निखरा स्वरुप ही हमारा मकसद है. जौहर साहब से कई बार मेरी बात हुई, उन्होंने कभी भी आपके लिए कोई अवांछनीय या गलत शब्द इस्तेमाल नहीं किया हमेशा यही कहा कि मैं सोनी जी को मना लूँगा, वो मेरे लिए सम्मानीय हैं, उनका दिल दुखाकर मैं खुश कैसे हो सकता हूँ.. श्री जौहर साहब की ऐसी बातें सुनकर मुझसे रहा नहीं गया और आपके समक्ष प्रस्तुत हुवा हूँ.. मेरी इस गुस्ताखी को हो सके तो माफ़ कर दीजियेगा.
श्री जौहर साहब वाकई एक बेहद उम्दा और सम्मानीय व्यक्तित्व के धनि होने के साथ-साथ बेहद ही उम्दा समीक्षक और उससे भी कही ज्यादा एक बेहद अच्छे इंसान भी हैं. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमने और कई गुनीजनो ने भी कई बार देखा है. चूँकि ये विवाद आखर कलश पर शुरू हुवा था.. तो हम भी अपने आपको आप दोनों (श्री जौहर साहब और श्री सोनी जी) का गुनाहगार मानते हैं. और ये भी कहना चाहूँगा कि मैं सिर्फ इसी वजह से भी मैं यहाँ कुछ कहने आया कि ये विवाद आखर कलश पर शुरू हुआ. चूँकि मैं भी साहित्य का एक पुराना विद्यार्थी हूँ, इसी नाते कि चर्च सही, सार्थक और सही दिशा में हो, जो कि हमारा मुख्य प्रयोजन है, बस यही चाहता हूँ. इसी सन्दर्भ में जो कुछ मेरे जहन में आया, निवेदन करने आया हूँ. आप कृपया अपना अनुज समझ कर भले ही डांट भी सकते हैं.. पर मेरा निवेदन इतना ही है कि श्री जौहर साहब का आपके प्रति कोई बुरा भाव नहीं है और ना ही और किसी का.
आपका 'बिगुल' ब्लॉग भी मैंने देखा है. बेहद ही गहरी, समसामयिक, यथार्थवादी तथा बेहद उम्दा लेखनी है आपकी इसीलिये मैंने आपका ब्लॉग फोंलो भी किया ताकि आपका अपडेट मुझे मिलता रहे और मैं पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ता रहूँ.
जौहर साहब ने श्री गुलशन जी और राकेश जी की रचनाओं पर जो टिप्पणियाँ की, वे बेशक अपने आपने सम्पूर्ण और वृहद् अध्ययन और बोद्धिकता का ही एक उदाहारह है. हाँ रचनाएँ बेशक अच्छी थी मगर जो अतिलघु कमियाँ श्री जौहर साहब ने इतना समय देकर इंगित की उनको स्वयं श्री गुलशन जी ने भी कही स्वीकार भी किया, और श्री सोनी जी, आपकी भावनाएं भी कोई गलत नहीं ( जैसा कि आपने साहित्यिक समूह विशेष से जुड़े होने की बात कही) हो सकता है जो आपने कहा कही सच हो.. पर सम्मानीय सोनी जी, सच्चाई सिर्फ उतनी नहीं जितनी हमे नज़र आती है.. उससे आगे भी सच्चाई का वज़ूद है. जिस तरह अँधेरे में टॉर्च की रौशनी से उतना ही दिखा पाती है जहां तक उस टॉर्च की रौशनी जाति है, इसका मतलब ये तो नहीं कि बाकी बाकी अँधेरे में कुछ है ही नहीं. सभी जगह ऐसा नहीं है. आपका सम्मान हमारे दिलों में हैं.. शायद आप देख पायें.. हाँ जो हुवा, गलत हुआ मगर अब जब आप जैसे जिम्मेदार, वरिष्ठ, सम्मानीय, अनुकरणीय व्यक्तित्व जब अब इस चर्चा को विराम नहीं देंगे और इसका स्तर अधोगामी रहा तो हम छोटे फिर क्या सीखेंगे आपसे. हम तो यहाँ सब गुनीजनों से सीखने ही तो आये हैं इस तकनीकी युग में सहजता से उपलब्ध इन सुविधाओं द्वारा. और फिर लघुता और सहजता में ही तो गुरुता छिपी होती है.. !!
तुम्हारी भी जय-जय हमारी भी जय-जय, ना तुम हारे ना हम हारे, सफ़र साथ जितना था हो ही गया है ना तुम हारे ना हम हारे..!!
अंत में मेरे प्रिय गज़लकार श्री दुष्यंत कुमार जी के इन दो शेरों के माध्यम से कहना चाहूँगा कि अब बहुत हुवा.
मूरत सँवारने में बिगड़ती चली गई ,
पहले से हो गया है जहाँ और भी ख़राब ।
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
अगर मेरी ये गुस्ताखी लगे, हो सके तो अपने वृहद् व्यक्तित्व का परिचय देते हुवे, अपना अनुज समझ कर मुआफ कर दीजियेगा...!
मेरा हृदय से नमन !
अज बहुत दिन बाद केवल एक ही ब्लाग पर आयी हूँ। आजकल पंजाब मे बिजली कर्मियों की हडल्ताल के चलेते केवल 2-3 घन्टे बिजली मिल रही है। इस लिये नेट पर देर तक आना सम्भव नही। लेकिन यहाँ शब्द शिल्पीयों को शब्दों के तीर चलाते देख कर मन दिखी हुया है। क्या संवाद का ये तरीका सही है? आप नये ब्लागर्ज़ को क्या दिशा दे रहे हैं? ये संवाद और मन का क्रोध ई मेल के जरिये या फोन पर भी कर सकते हैं। दोनो से कहूँगी इस संवाद को यहीं खत्म करें और अपने मतभेद मेल से निपट लें। एक साहित्यकार समाज को अच्छा सन्देश देता है न कि ब्लागिन्ग के नाम पर एक दूसरे को नीचा दिखाता है। जितेन्द्र आप इतने संवेदनशील हो लेकिन अपनी संवेदनाओं को बेकार की बहस मे मत गंवाओ। तुम से सभी को बहुत उमीदें हैं अपनी ऊर्जा को साहित्य के उत्त्थान मे लगाओ। मै राज कुमार जी को केवल उनकी रचनाओं से जानती होऔँ। अच्छे लेखक हैं तो। लेकिन अच्छे लेखक को अपने क्रोध को काबू मे रखना जरूरी है। दोनो से शान्ति की अपील करते हुये चाहती हूँ कि दोस्ती , प्रेम को बनाये रखें। धन्यवाद और शुभकामनायें।
ReplyDeleteनिर्मला कपिला जी ने सही शब्दों में बहुत व्यर्थ की बहस को विराम दिया .आभार .बात जीतेन्द्र जौहर की कविताओं से बहुत दूर हट गई मैं वहीँ पर आकर उन्हें सशक्त अभिव्यक्ति के लिए बधाई देता हूँ ---इन्हें केवल कवितायें कहें .धन्यवाद
ReplyDeleteजितेन्द्र "जौहर" जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अनेक कारणों से कई गुणीजन की पोस्ट्स भी नहीं देख पा रहा हूं …
आपके यहां भी बहुत विलंब से आया हूं …
शस्वरं पर आपका भी इंतज़ार करता रहा था … … …
25-30 शब्द की पोस्ट पर हजारों शब्दों के साथ 100 के आस-पास टिप्पणियां देख कर मन मुग्ध हो गया … बधाई !
लेकिन, मैं अत्यधिक लघु काव्य रचनाओं से तृप्त नहीं हो्ता … आपको जितना जाना है , छंद की गहरी समझ रखने वाले के रूप में ही पाया है ।
छंद को अच्छी तरह समझने वालों से श्रेष्ठ छांदस रचनाओं की अपेक्षा अनुचित तो नहीं ?
अगली बार एक ग़ज़ल या गीत की अभिलाषा लिए पुनः आऊंगा । निस्संदेह आप-से गुणी की प्रतीक्षा शस्वरं पर भी रहेगी …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जौहर साहेब, मैं आपके साथ एक लघु कथा सांझी करना चाहता हूँ. शायद हमारे अन्य साथियों को भी अच्छी लगे.
ReplyDeleteबहुत पुरानी बात है कि नदी में एक बिच्छू पानी में बहता जा रहा था. पास से गुजर रहे एक साधु की नज़र जैसे ही उस पर पड़ी, उसे दया आ गई. उसने एक पत्ते की सहायता से उसकी जान बचानी चाही. परन्तु जैसे ही यह पानी से बाहर निकलने को हुआ तो बिच्छू ने साधु को काट लिया. लेकिन साधु ने हिम्मत नहीं हारी और उसने बिच्छू को पानी में डूबने से बचाने के लिए कई प्रयत्न किये. समीप ही खड़े एक सज्जन ने कहा कि जब यह बिच्छू बाहर आते समय बार-बार आपको काटता है तो इसे पानी में ही क्यों नहीं डूबने देते? साधु ने बड़ी शालीनता से उत्तर दिया कि बिच्छू का स्वभाव काटने का है और मेरा काम जग की भलाई करने का है. जब यह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं अपना स्वभाव कैसे छोड़ दूं?
आद. विद्वज्जन,
ReplyDeleteसादर अभिवादन!
आपका कहा सिर-माथे स्वीकार...कोई भी समझदार इंसान यही तो कहेगा! मगर...एक नज़र उपर्युक्त सभी टिप्पणियों पर दौड़ाकर यह पड़ताल कीजिए कि इस समूचे घटना-क्रम में इस टिप्पणी बॉक्स में किसने क्या-क्या लिखा और क्यों...? उस लिखे हुए में से कितना अंश उचित और कितना अनुचित है...कितना मर्यादित और कितना अमर्यादित है...!
फिलहाल यहाँ श्री तिवारी जी का एक शे’र उद्धरित कर रहा हूँ, आंशिक संशोधन और अनुकूलन के साथ-
निभा रहे हैं अपनी दुश्मनी वो कितनी शिद्दत से,
यही वजह है मुझे अब भी उनपे प्यार आता है!
मुझे लगता है कि ये सब ब्लॉग बगैरह यहीं धरे रह जाएँगे...ऊपर वाला सब कुछ देख-सुन रहा है...किसी को अगणित गालियाँ, अवांछित उपाधियाँ और धमकियाँ देकर हम क्या हासिल कर सकते हैं...? यह एक विचारणीय प्रश्न हैं!
जौहर साहेब, मैंने आपके ही ब्लॉग पर कुछ पढ़ा था जो अब तक याद है. जीवन की इस भागम-भाग में इतने अच्छे विचार ढूँढने से भी नहीं मिलते. अतः मैं ये दो पंक्तियाँ यहाँ फिर से दोहरा रहा हूँ. यदि तुच्छता अपना समय, चिंतन और ऊर्जा किसी दूसरे की उच्चता का उपहास करने की बजाय अपनी तुच्छता को उच्चता में परिवर्तित करने में लगाती तो कितना अच्छा होता. परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह सृजनात्मक न हो कर आत्म-विनाशक हो गई है. यदि तुच्छता अपने दृष्टिकोण को बदल कर स्वयं में प्रतिस्पर्द्धात्मक विचारधारा का सृजन कर ले तो वह भी एक दिन दूसरों की ईर्ष्या का पात्र बन सकती है. ईश्वर मुझे भी सद्बुद्धि दे ताकि मैं अपने जीवन में सन्मार्ग पर अग्रसर हो सकूँ.
ReplyDeleteव्यासजी,
ReplyDeleteसिलसिलेवार जवाब देकर आपकी बात पर आता हूं।
सबसे पहले महारानी लक्ष्मीबाईजी को नमस्कार कर लूं
नमस्ते महारानीजी.
आशा है आपके राज में प्रजा सुखी होगी।
देवीजी,
ReplyDeleteआपने पहले और अंतिम संवाद की बात कही है। आपकी इस घोषणा का मैं स्वागत करता हूं। मैं पहले भी कह चुका हूं.. फिर कह रहा हूं। अपनी लड़ाई में बच्चों और महिलाओं को वे लोग शामिल कर लेते हैं जो कायर होते हैं।
आपने मेरे द्वारा किए जा रहे संवाद से अपने आपको अलग कर लिया इसके लिए मैं आपका आभारी हूं।
देवीजी,
ReplyDeleteआपने मुझे बेहतर साहित्यकार बनने की सलाह दी है।
साहित्यकार तो मैं कभी बनना ही नहीं चाहता। झूठ बोलते हुए कविता लिखने से क्या फायदा। आत्ममुग्ध होकर फांसी लगाने पर मेरा यकीन नहीं है। और सच तो यह है देवीजी कि इस देश का साहित्यकार बड़ा ही मामू है। वह बड़े से बड़े मुद्दे पर अपनी चुप्पी ओढ़े रखता है। कई बार तो यह लगता है कि साहित्यकार मां और बहन से भी बड़ी गाली का नाम है। मैं गाली खाने का आदी नहीं हूं।
देवीजी आशा है अब हम कभी बात नहीं करेंगे। आपकी कृपा बनी रहेगी तो मेरे वचन की रक्षा होती रहेगी।
ReplyDeleteनिर्मलाजी,
ReplyDeleteआप हम सबसे बड़ी है। आपकी शांति की अपील पर मैं लगातार विचार कर रहा हूं लेकिन मै एक मजदूर का बेटा हूं... हो सकता है कि संघर्ष से पीछे हटने की मेरी आदत कभी बनाई ही नहीं गई हो। फिर भी आपकी अपील के लिए धन्यवाद।
यादवजी और स्वर्णकारजी
ReplyDeleteहालात के मद्देनजर आपकी टिप्पणियां काबिले-तारीफ है।
आप दोनों को मेरी शुभकामनाएं
अब हे भाषा के महान वैज्ञानिक, साधु
ReplyDeleteभाई सहाब आखिर कब तक लोगों को पंचतत्र की कहानियां सुनाते रहोगे।
आपके साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आप यह स्वयं तय कर लेते हैं कि आपको क्या बनना है। कभी आप बच्चन बन जाते हैं कभी अपने आपको साधु बताने लगते हैं।
सब जानते हैं कि जब अटलजी प्रधानमंत्री थे तब साधुओं का शिष्टमंडल क्या-क्या गुल खिलाता रहा है। अभी दो रोज पहले ही कुछ साधु एक विवाहित से रेप करने के मामले में गिरफ्तार किए गए हैं।
तो हे... साधु बाबा... साधुगिरी साधुबाजी आपको ही मुबारक हो। आपको लगता है कि मैं राजकुमार सोनी बिच्छू हूं... तो भइया बलात्कारी साधु बनने से बेहतर है बिच्छू बने रहना।
बम-बम भोले बोल, दिमाग का ढक्कन खोल... बोलो साधु महाराज की... जोर से बोलो से भाइयों..........
जय........
और हां... स्टेपनी श्रीमानजी
ReplyDeleteएक बार अपनी टिप्पणी में यह तो बता दो प्रोफेसर प्यारेलाल..
बीच में टपकना कब बंद करोगे। इसके लिए आपको मानदेय मिलता है क्या।
जौहर साहब,
ReplyDeleteआपको क्या लगता है कि मेरी आपसे कोई दुश्मनी है। नहीं है भाई...
आप अपने समर्थन में जो-जो कर सकते हैं वह आप कर रहे हैं। मैं तो आपसे और आपके साथियों से अकेला ही बात कर रहा हूं।
जिस दिन आप कह देंगे कि सोनीजी अब और टिप्पणी मैं अपने ब्लाग पर नहीं चाहता उस दिन के बाद से मैं आपको टिप्पणी देना बंद कर दूंगा। हां... लेकिन इस बात का आपको ख्याल रखना होगा कि मेरी टिप्पणी बंद हो जाने के बाद आप फिर से ज्ञानचंदी नहीं दिखाएंगे।
मेरा आप पर सीधा आरोप है कि आप जरूरत से ज्यादा ज्ञानचंदी की बघार लगाते हैं।
यदि आपको लगता है कि यह बहस कभी समाप्त नहीं हो सकती तो इसे चलने दीजिए... मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
व्यासजी,
ReplyDeleteआप भले आदमी है जो बीच-बचाव की कोशिशों में लगे हुए हैं। लेकिन मुझे लगता है कि सब यही चाहते हैं कि अकेला मैं ही खामोश हो जाऊं। देखिए आपकी टिप्पणी के बाद कितने लोगों ने टिप्पणी कर दी है। खुद जौहर साहब भी ज्ञानचंदी बघारने से बाज नहीं आए। और भाषा वैज्ञानिक तो अपने आपको साधु और मुझे शैतान निरूपित करने में ही जुटा हुआ है।
यह सही है कि विवाद आपके ब्लाग पर शुरू हुआ था... जवाब भी मैं आपके ही ब्लाग पर दे रहा था लेकिन आपने मेरी टिप्पणियों का प्रकाशन बंद कर दिया सो मुझे समीक्षक महोदय के ब्लाग पर आना पड़ा। जौहर साहब की एक बात की दाद देता हूं और वह यह है कि उन्होंने टिप्पणियों के दरवाजे पर ताला नहीं लगाया। कोई और होता तो घबरा जाता। इस मामले में मैं उन्हें बधाई देता हूं। उनका यकीन बातचीत को लेकर कायम है। इस देश की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कोई बातचीत करना ही नहीं चाहता। जौहर साहब का यकीन लोकतंत्र पर कायम है।
व्यासजी,
आपने विवाद को समाप्त करने की पहल की है.. मैं इसका स्वागत करता हूं। मैं आपको एक निवेदन के साथ यकीन दिलाता हूं.. निवेदन यह कि मैं इस मुद्दे पर अपनी आखिरी टिप्पणी करने जा रहा हूं लेकिन मेरी इस टिप्पणी के बाद किसी ने टिप्पणी की तो उसे जवाब के लिए तैयार रहना होगा। यदि किसी को असहमति है तो वह मेरे मेल का उपयोग कर सकता है।
आपकी तरह मेरा यकीन भी मोहब्बत पर है। मोहब्बत जिन्दाबाद।
मैं एतद् द्वारा घोषणा करता हूँ कि आपके ब्लॉग पर दर्ज मेरी सभी टिप्पणियाँ केवल जौहर साहेब और मेरे मित्रों
ReplyDeleteसे ही सम्बंधित हैं. इनका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किसी अन्य व्यक्ति से कुछ लेना-देना नहीं है. यदि कोई भी व्यक्ति इन विचारों को अपने से जोड़ता है तो इसकी समस्त जिम्मेवारी उसी की होगी. मैंने यह टिप्पणी इसलिए दी है कि किसी भी सज्जन को इस विषय में किसी भी प्रकार की भ्रान्ति न रहे. धन्यवाद.
जीतेंद्र जी
ReplyDeleteनमस्कार
दोनों सूक्ष्मिकाएं पढीं .... आज कल कविता में शब्दों का बहुत अपव्यय होता है ..जिस बात को हम एक पंक्ति में कह सकते हैं उसे कहने के लिए बहुत सी पंक्तियाँ लिखी जाती हैं... आप शब्दों का महत्व समझते हैं ..पहली क्षणिका अगर एक लंबी कविता होती तो मैंने उसका सम्मान न कर पाता... पर आपकी सूक्ष्म दृष्टि उसे सम्मान के लायक बना दिया है ... कविता की संरचना पर अच्छी पकड़ है आपकी ... दूसरी कविता को आपने एक प्रक्रिया के तौर पर दर्शाया है ..जो कि वास्तव में है भी ..और समाज में प्रचलित भी है...
सादर .....
बहुत कम शब्दों के प्रयोग से
ReplyDeleteबहुत बड़ी बात कह देने का जौहर
आपकी काव्य कुशलता को रेखाँकित करता है..
और
इस रचना में छिपा सन्देश
घर - घर पहुंचे
यही कामना है .
अभिवादन स्वीकारें
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ReplyDelete@ Thakur M.Islam Vinay,
ReplyDeleteखेद का विषय है कि आपने हमारे ब्लॉग के इस टिप्पणी बॉक्स को अपने व्यक्तिगत प्रचार का माध्यम बनाया...! वाह...मेरे भाई...वाह... आप एक झटके में आये और अपनी ‘रेडीमेड’ विज्ञापनीय कॉपी यहाँ पेस्ट और पोस्ट करके खिसक गये... हाऽऽऽ...हाऽऽऽ!
मुझे रहीमदास जी का एक दोहा याद आ गया- "रहिमन जा जगत् में भाँति-भाँति के लोग..."
आपके आगमन से निजी स्वार्थ की गंध आ रही है। काश! आपने क्षणिकाएँ पढ़कर कुछ सार की बात भी की होती...! या फिर आपका विज्ञापन कोई गम्भीर साहित्यिक विषय से जुड़ा होता, तो कोई बुरी बात भी न थी!
कम शब्दों में प्रभावशाली प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपकी ये सूक्ष्मिकाएं शब्दों की कमखर्ची के बावजूद उत्तम दर्जे की प्रस्तुति लगी । बधाई व आभार...
ReplyDeleteआप मेरे ब्लाग नजरिया पर पधारे. अच्छा लगा.
कृपया भविष्य में भी आते रहें. यद्यपि मुझे शब्दों को सम्हालकर खर्च करने की मितव्ययिता शायद आती नहीं है. धन्यवाद...
जौहर साहेब, आपकी सूक्ष्मिकाएं तथा उन की मारक क्षमता पर हो रही दीर्घ टिप्पणियों को देखने के बाद मुझे एक दोहा याद आ गया है. हालांकि कुछ लोगों को इन्हें देख कर घृणा भी हो सकती है परन्तु आज के सन्दर्भ में ये सर्वाधिक सामयिक प्रतीत होती हैं. दोहों में भी शब्दों का न्यूनतम उपयोग होता है. शब्द अपव्ययिता के इस दौर में ऐसे लोगों के लिए ही यह दोहा देखिये कम शब्दों में कितनी बड़ी बात कह रहा है!
ReplyDeleteकरि फ़ुलेल के आचमन मीठो कहत सराहि।
रे गंधी मति अंध तू इतर दिखावत काहि ॥
बहुत सार्थक और अच्छी सोच .....बधाई
ReplyDeleteआपका वीणा के सुर पर आने का बहुत-बहुत शुक्रिया और यहां तक लाने का भी वर्ना इतनी सुंदर और परिपक्व व कम शब्दों की गहरी रचना कैसे पढ़ पाती। आपका ब्लॉग भी फॉलो कर लिया है...
ReplyDeleteआप इसी तरह उत्साह बढ़ाते रहिएगा.....
@ सुरेश यादव जी
ReplyDelete@ नवीन चतुर्वेदी जी
@ राना जी
@ मनोज मिश्रा जी
@ वीना श्रीवास्तव जी
‘जौहरवाणी’ के ‘साथी-संगम’ में आप सभी की उपस्थिति मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देती रहेगी... सहृदयता व सद्भावना के लिए ‘आभार’ शब्द छोटा जान पड़ता है...तथापि कृपया इसे स्वीकार कीजिए!
बहुत खूबसूरती से लिखा है.
ReplyDeletebahut hi acha likha hai aapne...
ReplyDeletemere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra
kam shabdon mein behtarin rachna
ReplyDeleteकम शब्दों में प्रभावी बात। सुन्दर रचना!
ReplyDeleteBhaoot khoob!!!
ReplyDeleteThanks for visiting my blog and for the good wishes.
नमस्कार जी
ReplyDeleteबहोत सुंदर लिखा हैं आप ने
Jitendra ji
ReplyDeleteKam shabdon mein vichaar bunna ek aadhi jung jeetne ke barabar hai..
Jo Bimb aapne daulat aur nashe ka kheencha hai, vah kabile tareef hai.
daad ke saath
Merry Christmas
ReplyDeletehope this christmas will bring happiness for you and your family.
Lyrics Mantra
@ प्रेरणा जी
ReplyDelete@ आलोकिता जी
@ स्मार्ट इंडियन जी
@ देवी नागरानी जी
@ मर्मज्ञ जी
‘जौहरवाणी’ के ‘साथी-संगम’ में भी अपनी प्रेरक उपस्थिति दर्ज करने के लिए आप सभी विद्वज्जनों का हार्दिक आभार!
......................................
@ देवी नागरानी जी एवं मर्मज्ञ जी,
मैंने आपको देश-विदेश की तमाम पत्रिकाओं में पढ़ा है और आपके साथ छपता भी रहा हूँ। अब आपको ब्लॉगिंग में देखकर सुखद अनुभूति हो रही है!
देश की एक प्रतिष्ठित पत्रिका ने ‘ब्लॉग भ्रमण’ शीर्षक से एक नियमित स्तम्भ लिखने का प्रस्ताव रखा है। यदि मैं उक्त स्तम्भ के लिए समय निकाल सका, तो आपकी उत्कृष्ट ब्लॉगीय सक्रियताओं का नोटिस लूँगा ही।
dekhan me chhoti lage ghav kare gambhir ,ati sundar dono hi ,nav barsh ki bahut bahut badhai .
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं--बधाए ...पर ये बकवास क्या व क्यों प्रारम्भ होगई यहां बज़ाय साहित्यिक समालोचना / प्र्शंसा के...
ReplyDeleteजितेन्द्र जी, आप मेरे ब्लौग पे अचानक से जो "लैंड" किये वो कितना सुखद था मेरे लिये...अभिनव प्रयास ने जो मेरी ग़ज़लों को पहचान दी उसे कभी न भूला पाऊँगा!
ReplyDeleteयहाँ आया, तो अलग ही महाभारत मचा हुआ है...हे ईश्वर! नव वर्ष की समस्त शुभकामनायें!
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ReplyDeleteमकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं........
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
ReplyDeleteकभी समय मिले तो हुमारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.com पर भी एक नज़र डालें .
Bahut khoob...
ReplyDeletechhoti si kashida me aapne bahut kuchh kah diya.
nice
ReplyDeleteWAAH ..WAAAH ....BAHUT SUNDAR ...BADHAI ....!!
ReplyDelete