यहाँ ‘संज्ञाएँ’ शब्द का प्रयोग सांकेतिक है; यह संकेत उन स्व-घोषित ‘महाकवियों’ को केन्द्र में रखकर रचा गया है जो स्वयं को साहित्य की किसी अंतरिक्षीय कक्षा (Orbit) में स्थापित करने / करवाने के लिए स्व-प्रायोजित ‘महा अभिनंदन-ग्रंथ’ तक प्रकाशित करवा डालते हैं, वह भी अपने ख़र्चे पर... हाऽऽ हाऽऽ हाऽऽ...!
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आवारा विशेषणो !
जाओ...
कि स्वार्थ-साधना पर बैठी
उच्छृंखल ‘संज्ञाएँ’
बुला रही हैं तुम्हें!
जाओ...
कि वे तुम्हारे मुक्त साहचर्य की
आकांक्षिणी हैं।
जाओ...
कि यश-कामना की शब्दारती
उतारनी है तुम्हें!
जाओ...
कि आत्म-मुग्ध सर्जना
निजाभिषेक को आतुर है।
जाओ...
कि ‘अहम्’ अपनी तुष्टि की चाह में
मृग-सा विकल है।
जाओ...
कि क्रिया-पदों की पंगत में
विशेषादर मिलेगा तुम्हें!
जाओ...
कि उभयपक्षीय लाभ का सौदा
क्रियान्वयन को लालायित है।
जाओ...
कि साठोत्तरी अक्षर-यज्ञ की
समिधा बनना है तुम्हें!
जाओ...
कि एक ‘अधूरी’ पांडुलिपि को
तुम्हारी ‘अधीर’ प्रतीक्षा है।
ऐ आवारा विशेषणो... !
जाओ...
जाओ... कि स्वार्थ-साधना पर बैठी
उच्छृंखल ‘संज्ञाएँ’
बुला रही हैं तुम्हें!
-जितेन्द्र ‘जौहर’
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(1). उपर्युक्त कविता पर गुण-दोष विवेचनपूर्ण टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है!
कि स्वार्थ-साधना पर बैठी
उच्छृंखल ‘संज्ञाएँ’
बुला रही हैं तुम्हें!
जाओ...
कि वे तुम्हारे मुक्त साहचर्य की
आकांक्षिणी हैं।
जाओ...
कि यश-कामना की शब्दारती
उतारनी है तुम्हें!
जाओ...
कि आत्म-मुग्ध सर्जना
निजाभिषेक को आतुर है।
जाओ...
कि ‘अहम्’ अपनी तुष्टि की चाह में
मृग-सा विकल है।
जाओ...
कि क्रिया-पदों की पंगत में
विशेषादर मिलेगा तुम्हें!
जाओ...
कि उभयपक्षीय लाभ का सौदा
क्रियान्वयन को लालायित है।
जाओ...
कि साठोत्तरी अक्षर-यज्ञ की
समिधा बनना है तुम्हें!
जाओ...
कि एक ‘अधूरी’ पांडुलिपि को
तुम्हारी ‘अधीर’ प्रतीक्षा है।
ऐ आवारा विशेषणो... !
जाओ...
जाओ... कि स्वार्थ-साधना पर बैठी
उच्छृंखल ‘संज्ञाएँ’
बुला रही हैं तुम्हें!
-जितेन्द्र ‘जौहर’
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(1). उपर्युक्त कविता पर गुण-दोष विवेचनपूर्ण टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है!
(2). काव्य सृजनधर्मियों के लिए एक आवश्यक सूचना--
हमारी पत्रिकाओं ‘अभिनव प्रयास’ (अलीगढ़) एवं ‘प्रेरणा’ (शाहजहाँपुर) के लिए काव्य की प्रत्येक विधा की उत्कृष्ट एवं प्रकाशन-योग्य रचनाएँ सादर आमंत्रित हैं।