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साथी-संगम

Wednesday, October 20, 2010

आत्मा : हिदू बनाम मुस्लिम

ज मैं  ब्लॉग-जगत्‌ में चिंतन-मनन के बीज-कणों को तलाशता हुआ डॉ. दिव्या श्रीवास्तव  (थाइलैण्ड) के   ब्लॉग  http://zealzen.blogspot.com/2010/10/our-soul.html  पर जा पहुँचा। दिव्या जी ने अपनी एक ताज़ा पोस्ट में ‘आत्मा’ विषयक अनेक रोचक प्रश्न उठाये हैं। मेरे पहुँचने तक वहाँ 92 प्रतिक्रियाएँ समाने आ चुकी थीं... जिनमें एक-से-बढ़कर-एक विचार भरे पड़े थे। मेरी यात्रा सुखद रही। जो प्रश्न अक्सर मेरे मस्तिष्क में उभरकर चिंतन को कुरेदते रहे हैं, आज पुनः उठ खड़े हुए।  दिव्या जी ने ‘आत्मा’ जैसे ‘दिव्य’ विषय पर अनेक विचार-बिन्दु सामने रखे हैं जिनमें से  उनके निम्नांकित प्रश्न पर मैं अपनी विचार-माला जोड़ना चाहूँगा (यद्यपि मैं इस विषय का न तो कोई आधिकारिक विद्वान हूँ और न ही कोई विशिष्ट अध्येता) :

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"क्या आत्माओं का भी कोई धर्म होता है ? क्या एक हिन्दू आत्मा मुस्लिम परिवार में जन्म ले सकती है?" 
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        त्मा को ‘ऊर्जा’ मानते ही इस प्रश्न का समाधान स्वयमेव हो जाता है...आइए, हम एक बार  विचार करके देखते हैं-

 जिस प्रकार ऊर्जा अनेक वैद्युत उपकरणों में प्रविष्ट होकर उन्हें संचालित/ गतिमान/ प्रकाशमान कर देती है, उसी प्रकार ‘आत्मा’ हमारे देह-रूपी उपकरण को संचालित करती है।

अब, ऊर्जा ‘फिलिप्स’ के उपकरण में प्रविष्ट हो या ‘क्रॉम्प्टन’ के उपकरण में...या फिर किसी अन्य ब्राण्ड के किसी यंत्र में, इससे ऊर्जा का धर्म तो नहीं बदल जाता! ‘फिलिप्स’ ब्राण्ड  के उपकरण/ यंत्र में जाकर वह ‘फिलिप्सीय ऊर्जा’ नहीं कहलाएगी...और न ही ‘क्रॉम्प्टन’ के बल्ब में घुसकर ‘क्रॉम्प्टनीय ऊर्जा’। ऊर्जा तो सिर्फ़ ऊर्जा है।

ठीक उसी प्रकार आत्मा किसी ‘हिन्दू’ देह में प्रविष्ट हो या  किसी ‘मुस्लिम’ शरीर में...इससे आत्मा के साथ ‘हिन्दू-मुस्लिम’ नाम्नी विशेषण नहीं जोड़े जा सकते हैं। आत्मा तो सिर्फ़ आत्मा है!

अब थोड़ा व्यापक दृष्टि से देखिए-
‘हिन्दू’ और ‘मुस्लिम’ उस  परमसृष्टा की सृजन-सोच के हिस्से नहीं हैं; उसने तो सिर्फ़ ‘मनुष्य’ को गढ़ा है, ‘हिन्दू-मुस्लिम’ आदि को नहीं। ये जो ‘हिन्दू-मुस्लिम’ आदि हैं, सब  मनुष्य की निर्मितियाँ हैं। राष्ट्रकवि दिनकर जी ने ‘रश्मिरथी’ के द्वितीय सर्ग में  लिखा है कि :

'मैं कहता हूँ, अगर विधाता नर को मुठ्ठी में भरकर,
कहीं छींट दें ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमण्डल पर,
तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहाँ आ सकता है;
नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है?


इस प्रकार हिन्दू-मुस्लिम रूपी क्यारियाँ पूर्णतः मानव-निर्मित हैं। मेरी राय में, जिस प्रकार किसी एक ‘क्यारी’ का  ‘पौधा’ किसी दूसरी ‘क्यारी’ में जाकर पुष्पित-पल्लवित हो सकता है, ठीक उसी प्रकार एक जन्म में हिन्दू परिवार में जन्मने वाले व्यक्ति की आत्मा किसी अगले जन्म में मुस्लिम-परिवार में देह-रूप धारण कर सकती है। ...Contd 


(शेष अगली किस्त में)    

16 comments:

  1. भाई आप नाम सही कर ले .
    डा. दिव्या श्रीवास्तव नाम है

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  2. अभिषेक भाई,
    अनवधानतावश हुई त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षित कराने के लिए धन्यवाद।

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  3. मैं डॉ.दिव्या जी,का आत्मा विषयक आलेख पूरा पहले ही पढ़ चुका हूँ.वैज्ञानिक धरातल पर इस बेहतरीन आलेख में आगे और भी कई ठोस प्रश्न नज़र आयेंगे.बहरहाल वर्तमान की भौतिकवादी दुनिया में जहाँ कोई अपनी आत्मा बेंच रहा है, कोई गिरवीं रख रहा है,वहां आत्मा के बारे में क्या कहें.
    मैंने अपनी एक ग़ज़ल में कहा है:-
    आत्मा से कभी पूछ ले,
    कौन सी राह पर तू चले .
    वैध समलैंगिकता हुई,
    उफ़ अदालत के ये फैसले.

    कुँवर कुसुमेश.
    ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com

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  4. .

    जीतेन्द्र जी ,

    चर्चा को नया आयाम देने के लिए आभार। आपका उत्तर संतोषप्रद लगा ।

    आभार।

    .

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  5. यह विषय गहन गंभीर है और मनन चिंतन का है और मेरी सोच तो यह है कि हर मनन चिंतन एक ही जगह पहुँचे यह जरूरी तो नहीं। मनन चिंतन से आज तक जो पाया वह अगर निरंतर पुष्‍ट होता जाता है तो आत्मिक संतुष्टि भले ही दे लेकिन जरूरी नहीं कि वही सत्‍य हो।
    मनुष्‍य की अज्ञानता का सबसे प्रमाण है अज्ञात को ज्ञात नियमों में बॉंधकर देखने का।

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  6. (आद. निर्मला कपिला जी का यह कमेंट पोस्ट नहीं हो पा रहा था, यह उनकी सदाशयता और सद्‌भावना है कि उन्होंने अपना कमेंट ईमेल द्वारा मेरे पास भेज दिया। इन शब्दों के साथ: "नमस्कार, आपके ब्लाग पर कमेन्ट नही हो पा रहा। मेरे इस कमेन्ट को वहाँ पोस्ट कर दें। धन्यवाद।")

    जितेन्द्र जी,
    श्रेष्ठ चिन्तन । आत्मा तो प्रमात्मा का रूप है और प्रमात्मा के लिये सभी जीव उसकी संताने हैं। ये भेद भाव तो मनुष्य के अपने बनाये हुये हैं। अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा। धन्यवाद।

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  7. जौहर जी,
    आत्मा विषयक आपकी व्याख्या एकदम सटीक है...कवि भी सत्य का अन्वेषण ही तो करते हैं।

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  8. bahut kathin vishay hai -aatma.
    sudhi vidwano ki pratikriyawo ka aanand lete huye sikh raha hoon.

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  9. Comment is not going in one stroke nowadays.

    kunwar kusumesh

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  10. जौहर साहेब नमस्कार! आपकी राय से मैं एक दम इत्तेफाक रखता हूँ. अगर आत्मा का कोई मजहब होता तो शायद खुदा का भी होता. सूरज की रोशनी, हवाएं और पानी का भी यकीनन कोई मजहब होना चाहिए था. मगर ऐसा नहीं है. अलग अलग मजहबों को एक ही सूरज रोशनी देता है. सब को एक जैसी हवा और पानी मयस्सर होता है. और हम तो ये भी तसलीम करते हैं कि खुदा इस दुनिया के गोशे गोशे में है....फिर भी ना जाने क्यों कहीं मस्जिद, कहीं गिरजा और कहीं मंदिर क्यों है? ये सब तो इंसान कई कम अक्ल की सोच है.
    आपकी दलील काबिले-तारीफ़ हैं. अश्विनी रॉय

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  11. अश्वनी रॉय जी,नमस्कारम्‌!
    क्या बात है जी...! आपके विचार सहज स्वीकार्य हैं। प्रभावित हुआ हूँ आपके मूल चिंतन से। मेरे एक घनिष्ठ मित्र हैं- धनंजय सिंह ‘राक़िम’... उनके दो शे’र यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ जो उन्होंने ईमेल से भेजे हैं।

    चूँकि आपके विचार पढ़कर मुझे ये शे’र याद गये, सो आपको ही समर्पित कर रहा हूँ :
    "मैं क्या हूँ और मेरा क्या है
    आखिर मेरा होना क्या है
    अल्ला है हर शय में राकिम
    अल्ला जाने अल्ला क्या है"

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  12. क्या विश्लेषण किया है आपने...वाह !!!!

    आपके ज्ञान और चिंतन धारा ने कितना प्रभावित किया है,मैं कह नहीं सकती...

    अपने ब्लोगरोल में सम्मिलित कर लिया है आपके ब्लॉग को ताकि कुछ भी पढने से वंचित न रह जाऊं..

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  13. जीतेंद्र जी ,
    दिव्या जी का ब्लॉग तो मैंने नहीं पढ़ा किन्तु आपकी सोच से पूरी तरह इत्तेफाक रखती हूँ..और अपने आत्मा को ऊर्जा रूप में समझाने के लिए जो उदहारण रखा है वो काबिले तारीफ है ..ईश्वर भी तो इंसानों का गढा हुआ एक नाम है.. जबकि ईश्वरीय तत्व ऊर्जा की उच्चतम स्थिति है और उसी उच्चतम स्थिति को प्राप्त करना हर आत्मा रुपी ऊर्जा का प्रयास है...आपकी अगली किस्त का इंतज़ार रहेगा.... यह विषय मेरा प्रिय विषय है चिंतन के लिए ..विचारों का स्वागत है

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  14. maine vh aalekh nhi pdha hai pr tipnniyan dekhi hain jin me bina sir pair kee bat hui hain
    jis aatma kee bat ho rhi hai vh manvta vadi dhrm mt nhi ya snatn ya hindoo dhrm kee ho rhi hai jb islam me is trhr ki koi manyta hi nhi hai to vhan aap jbr dsti kyon ise thoons rhe hai hai ki jaise jitendr ji ko khen ki tum jitendr nhi ho tum virendr ho aakhir ve pichha chhudane ke liye khen ki han 2 main virendr hoon
    aatma ke sath punrjnm bhi juda hai pr islam ise adharmik ya shaitani kammanta hai fir islam me aatma ka kya mhtv rh gya
    aatma pr bahs bemani hai yh to anubhooti kee ka vishy hai aannd ka vishy poorn aannd ka vishy aannd lijiye apnirksha ke liyedinkr ne shktio ki upasna kee bat bhi khi hai
    chhinta ho swtvkoi ........
    ise bhi dhyan me rkhna jroori hai
    jivn ka astitv bhi bda prshn hai aur jo aatnk faila rhe hain ve aap ke is drshn ko nhi jante un ke liye geeta ka schcha rsta shkti kee upasna ka hai tbhi dhrm kee jai hogi

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  15. PARM ADARNIY SRI "JAUHAR" JI PARNAM !

    HAMNE APP KO KHOJ HI LIYA.SHAYAD APP NE KABHI SOCHA BHI N HOGA. AB APP SE LINK BANA RAHEGA.
    SURENDER SINGH CHAUHAN "KAKA" SAHARANPUR NOW IN DELHI

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  16. सुरेन्द्र भाई,
    लगभग 7-8 वर्षों के बाद आपसे इस मंच पर हुई यह अचानक भेंट बहुत
    सुखद लगी। इसे कहते हैं अपनत्व। बहुत-बहुत शुक्रिया!
    -जितेन्द्र ‘जौहर’
    मोबा. +91 9450320472

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