स्वागतम्‌...!


Click here for Myspace Layouts

साथी-संगम

Saturday, September 22, 2012

मुक्तक : कुछ विचार, कुछ प्रकार

प्रिय मित्रो,
निम्नांकित आलेख मैंने प्रसिद्ध त्रैमा. ‘शब्द प्रवाह’ (उज्जैन) के ‘मुक्तक विशेषांक’ (अंक-15, अप्रैल-जून ’12) के लिए...तमाम व्यस्तताओं के बीच... बहुत जल्दबाज़ी में लिखा था...देश के विभिन्न हिस्सों में जहाँ-जहाँ यह पत्रिका गयी... इसे पाठकों का भरपूर प्यार मिला। इस आलेख का परिवर्द्धित संस्करण ‘नई ग़ज़ल’ (शिवपुरी, म.प्र)  के अंक जुलाई-सितम्बर ’12 में प्रकाशित हुआ है। अभी हाल ही में यह आलेख प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘वीणा’ (इन्दौर) के अंक-1025, मई-2013 में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है। कुछ अन्य पत्रिकाओं ने भी इसे ‘साभार’ प्रकाशित करने के संकेत दिये हैं। 
____________________________
आलेख:

मुक्तक : कुछ विचार, कुछ प्रकार
  -जितेन्द्र ‘जौहर’


दि कतिपय उत्कृष्‍ट एवं विशिष्‍ट उदाहरणों को अपवाद-रूप में परे हटा दिया जाय, तो मुक्तक-परिक्षेत्र में काफी असंतोषजनक स्थिति दिखायी पड़ती है। इसका सबसे बड़ा कारण शिल्पगत अध्ययन के प्रति उदासीनता है। हिन्दी काव्य के इस लघु परिक्षेत्र में संव्याप्‍त भाव-भाषा-शिल्प की अराजकता का ग्राफ इतना ऊँचा है, जिसे देखकर किसी भी विधा-मर्मज्ञ को आश्‍चर्य हो सकता है। कहीं किसी पत्रिका में ‘रुबाई’ शीर्षक के अन्तर्गत मुक्तक/क़त्‍आत्‌ प्रकाशित मिल जाते हैं, तो कहीं मुक्तक/क़त्‍आत्‌ की चारों पंक्तियाँ चार अलग-अलग छंदों/बह्‌रों से नज़रें मिलाती नज़र आ जाती हैं; इसे रचना का ‘भैंगापन’ कह देना, अनुचित नहीं जान पड़ता। इतना ही नहीं, कभी-कभी तो चार में से एक भी पंक्ति किसी छंद/बह्‌र की कसौटी पर खरी नहीं उतरती...न मात्रिक और न ही वार्णिक। भाव और भाषा के जो दोष होते हैं, सो अलग! इसके अतिरिक्त कुछ छपास-प्रेमी कविगण अपनी छोटी-बड़ी बह्‌रों पर आधारित ग़ज़लों में से किन्हीं मिलते-जुलते भावों पर टिके दो अश्‌आर (प्रायः एक मत्ला + एक शे’र) मिलाकर ‘मुक्तक’ के रूप में खपा देते हैं। यह विडम्बना ही है कि जिन महाशयों को स्वयं ही किसी विधा-विशेष का समुचित ज्ञान नहीं है, वे भी उल्टा-सीधा (जैसा भी है) थोड़ा-बहुत काम करके स्वयं को विधागत पुरोधा बनाकर पेश करते रहे हैं। उदाहरणार्थ, देश के लगभग हर क्षेत्र में ऐसे स्व-घोषित अथवा स्वजन-प्रक्षेपित ‘ग़ज़ल-सम्राट’ मौजूद हैं, जिनकी स्वयं की ग़ज़लें भाव-भाषा-शिल्प की चौखट पर घुटने टेक देती हैं। यही बात कमोवेश ‘मुरुक़-प्रदेश’ पर भी लागू है- मुरुक़...अर्थात्‌ ‘मुक्तक+ रुबाई+ क़ता’। सौभाग्यवश ‘सरस्वती सुमन’ जैसी प्रतिष्‍ठित पत्रिका के अतिथि संपादक के रूप में मुझे देश-देशान्तर के ४२५ से अधिक मुरुक़-लेखकों से सीधे संपर्क में आने का भरपूर अवसर मिला। उस दौरान कुछेक दर्जन ऐसे कविगण मिले, जिन्होंने अपनी मुक्तकाभिव्यक्तियों से मन मोह लिया। वहीं कुछ ऐसे कवियों से भी भेंट हुई, जो अपने मुक्तकों को ‘रुबाई’ कहते हैं। इन्हीं में से एक सज्जन ने तो अपने मुक्तक/क़त्‍आत्‌ का एक ऐसा संग्रह छपवा लिया, जिसमें आरम्भिक पृष्‍ठ पर शीर्षक के नीचे कोष्‍ठक में दर्ज है- ‘रुबाइयाँ’, जबकि उसमें शायद ही कोई ‘रुबाई’ शामिल हो! 

मुक्तक-परिक्षेत्र में व्याप्‍त उक्तवत शैल्पिक अराजकता के उदाहरण-वैपुल्य के बीच एक बानगी नीचे प्रस्तुत है, जिसके रचयिता का नाम प्रकाशित करना कोई आवश्यक नहीं है। यहाँ मेरा उद्‍देश्य नवोदितों एवं जिज्ञासुओं के सम्मुख उदाहरण-सम्मत विचार प्रस्तुत करना है-

तन के तानपुरे की सुन ले, ये मिट्‍टी की महिमा गाता है
ख़ुद अपनी पे आ इतना इतराता है, इठलाता है, मदमाता है
महाबली भीम की जब लेती है यहाँ चिता परीक्षा
एक लकड़ी भी वो अपनी छाती से हटा नहीं पाता है।

‘छंद/बह्‌र’ के धरातल पर लड़खड़ाता हुआ उपर्युक्त मुक्तक निःसंदेह एक बड़ी ‘सर्जरी’ की माँग करता है। यह मुक्तक स्पष्‍ट संकेत दे रहा है कि मुक्तककार के पास भाव और विचार का ‘अभाव’ नहीं है। उसके पास न तो शब्दों का अकाल है, और न ही समुचित उदाहरण अथवा दृष्‍टान्त चुन लेने की क्षमता की कमी। उसके पास कमी है, तो बस सम्यक्‌ ‘छंद-ज्ञान’ की, जिसके चलते उसके सुन्दर भाव, सारगर्भित विचार और सराहनीय शब्द-चयन आदि सब-के-सब धरे-के-धरे रह गये। छंद-ज्ञान के अभाव ने कवि के इस मुक्तक में अनुस्यूत ‘तन के तानपुरे’ का सुन्दर एवं अनुप्रास-युक्त रूपक तो सस्ते में गँवा ही दिया, साथ ही ‘मिट्‍टी’ और ‘भीम’ की सांकेतिकता पर भी ग्रहण लगा दिया है। इस मुक्तक की स्थिति कमोवेश वैसी ही है, जैसे कोई ‘श्रेष्‍ठ विचारों वाला व्यक्ति’ अस्त-व्यस्त दशा में किसी सार्वजनिक समारोह में उपस्थित हो गया हो आकर! इस सबके बावजूद इसमें गुँथे भावों-विचारों की उत्कृष्‍टता ने मुझे प्रेरित किया कि इसका कमोवेश ‘ऑपरेशन’ किया जाय। ऐसा ऑपरेशन, जिसमें थोड़ा-बहुत शिल्पगत समझौता स्वीकार करते हुए मुक्तककार (?) के मूल भाव-विचार में कोई विशेष अन्तर उत्पन्न न होने पाये। सो मैंने अपनी सीमित समझ के आधार पर एक लघु प्रयास किया, परिणाम नीचे प्रस्तुत है-

तन का तानपुरा हरपल मिट्‍टी की महिमा गाता है
फिर भी अपनी पर आकर मानव अक्सर इठलाता है
मृत्यु परीक्षा लेती है जब भीम-तुल्य बलशाली की
लकड़ी का इक टुकड़ा भी छाती से हटा न पाता है।

इसे एक सीमा तक ‘पुनर्लेखन’ की संज्ञा भी दी जा सकती है, यह अलग बात है कि अभी भी इस मुक्तक के स्तर में ‘श्रीवृद्धि’ का मार्ग अवरुद्ध नहीं है। श्रेष्‍ठता की गुंजाइश तो सदैव बनी ही रहती है। और फिर...एक बात यह भी कि कोई भी लौकिक सृजन, संशोधन अथवा अनुसृजन ब्रह्मा की लिपि नहीं है। मेरा उपर्युक्त प्रयास भी इसका कोई अपवाद नहीं है। बहरहाल उदाहरण एवं अनुभव इतने कि यदि लिखने बैठूँ, तो एक भारी-भरकम ग्रंथ तैयार हो जाय। फ़िलहाल यहाँ मुख्य प्रकरण (विषय) से जुड़कर बात को आगे बढ़ाना उचित होगा। इस क्रम में, सबसे पहले बात करता हूँ- ‘दोहा-मुक्तक’ पर। दोहा-मुक्तककारों में सम्प्रति सिर्फ़ दो प्रमुख कवियों के नाम और काम मेरे संज्ञान में आये हैं; एक डॉ. ब्रह्मजीत गौतम और दूसरे श्री कमलेश व्यास ‘कमल’। इन कवि-द्वय का एक-एक उदाहरण क्रमशः नीचे प्रस्तुत है-

जीवन क्या है अन्ततः सिर्फ़ सुखों की झील
अथवा है यह दुख-भुझी एक नुकीली कील
सुख औ’ दुख के बीच जो जलती आठों याम 
जीवन है वह वस्तुतः एक सुभग कंदील। 
                                                                                                                    (डॉ. ब्रह्मजीत गौतम)

कहना न होगा कि जब कोई कवि अपनी रचनाओं में मुहावरों का यथोचित प्रयोग करता है, तब उसका सृजन और भी अर्थ-दीप्‍त हो उठता है। निम्नांकित दोहा-मुक्तक में परम्परागत कथ्य के बावजूद मुहावरेदार भाषा-प्रयोग ने रचना को अलंकृत कर सपाटबयानी के धरातल से दूर पहुँचा दिया है। साथ ही, इस दोहा-मुक्तक में प्रयुक्त ‘भरोसा’ को प्रदान की गयी ‘बालू की भीत’ की उपमा ने मुक्तककार की भावाभिव्यक्ति का श्रृंगार कर दिया है-
हुआ भरोसा आजकल, ज्यों बालू की भीत।
नैतिकता अब हो गयी, भूला-बिसरा गीत।
इष्‍ट-मित्र किसको कहें, मतलब के हैं यार,
आज बदलते दौर में, पैसा है तो प्रीत। 
                                                                                                                (कमलेश व्यास ‘कमल’)

यदि आलोचनात्मक दृष्‍टि से देखा जाय, तो विधागत रूप से ‘दोहा’ स्वयं ही ‘मुक्तक काव्य’ के अन्तर्गत आता है, तथापि ‘दोहा’ छंद के अनुशासन में बँधी चतुष्‍पदी रचनाओं अर्थात्‌ ‘दोहा-मुक्तकों’ पर कोई प्रश्‍न-चिह्न लगाना उचित नहीं जान पड़ता है। माना कि वह चतुष्‍पदी रचना अपनी तृतीय पंक्ति में दोहा की निर्धारित तुकान्त-योजना को भंग कर देती है, तथापि उसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वह समतुकान्तता की छूट लेकर भी दोहा छंद को भंग नहीं करती। इस बिन्दु के समर्थन में मेरा तर्क यह कि उस तृतीय पंक्ति में ‘विषम’ की प्रयुक्ति मुक्तक के लिए निर्धारित एक तुकान्त-योजना ‘सम-सम-विषम-सम’ के निर्वाह के लिए होती है, जो कि ‘दोहा’ छंद में रचित चतुष्‍पदियों को विधागत मानक पर खरा सिद्ध करती है। सच यह भी है कि दोहा-मुक्तककारों के सम्मुख चारों पंक्तियों को ‘सम-सम-सम-सम’ के विधान में प्रस्तुत करने का विकल्प भी खुला हुआ है। अभी तक किसी भी दोहा-मुक्तककार का ऐसा कोई मुक्तक मेरी दृष्‍टि से नहीं गुज़रा है। इस दिशा में भी काम किया जा सकता है। ‘सम-सम-सम-सम’ के तुक विधान से बचने का एक कारण शायद यह भी हो सकता है कि इस तुक-विधान में दोहा-मुक्तक रूपी ‘चतुष्पदियों’ में दो मिलते-जुलते भावों-विचारों वाले दोहों के संयुक्त होने की भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो सकती है, लेकिन मेरी विनम्र राय में जहाँ तक ‘सम-सम-सम-सम’ के विधान की बात है, तो कहना होगा कि जब यह तुकान्त-योजना मुक्तक, रुबाई, क़त्‍अः में स्वीकार्य है, तो दोहा-मुक्तकों में क्यों न स्वीकार की जाय? प्रसिद्ध छंद-पथी कवि श्री धनीराम ‘बादल’ (उज्जैन) का एक क़त्‍अः/मुक्तक देखें, जिसमें चारों मिसरे क़ाफ़िया-रदीफ़ से बँधे हैं-

बन्द यारों के लब रहे होंगे
कुछ तो इसके सबब रहे होंगे
डर दिलों में ग़ज़ब रहे होंगे
मर्द लफ़्ज़ों में सब रहे होंगे।

उपर्युक्त मुक्तककार का ही एक अन्य मुक्तक देखें, जिसमें तीसरे मिसरे को क़ाफ़िया-रदीफ़ के बंधन से मुक्त रखा गया गया है। इसमें कविवर ‘बादल’ का अन्दाज़े-बयाँ भी क़ाबिले-ग़ौर है:

ऐसा इन्कार कि इक़रार की हद को छू ले
ऐसा ठहराव कि रफ़्तार की हद को छू ले
बुत बने बैठे हैं, नज़रें ये मगर कहती हैं
ख़ामुशी ऐसी कि गुफ़्तार की हद को छू ले।

सर्व-विदित है कि हिन्दी में सर्वाधिक मुक्तक ‘सम-सम-विषम-सम’ के विधान में ही निबद्ध हैं। यहाँ पुनः स्पष्‍ट करना चाहूँगा कि ‘सम-सम-विषम-सम’ के विधान में रचे गये दोहा-मुक्तक पूर्णतः स्वीकार्य हैं। इसे ‘दोहा’ छंद मे किये गये ‘नये प्रयोग’ के रूप में स्वीकार किये जाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इतिहास साक्षी है कि काव्य-मर्मज्ञों ने समय-समय पर छंद के क्षेत्र में नये-नये प्रयोग किये हैं; एक सद्यस्क उदाहरण तो ‘जनक’ छंद का भी उल्लेख्य है, जिसकी वंशावली ‘दोहा’ छंद से जुड़ी है। उधर ‘कुण्डलिया’ में भी इसके प्रयोग से हम सभी परिचित हैं ही।

‘मुरुक़-प्रदेश’ में एक नया प्रयोग हाइकु-मुक्तक और ‘हाइकु-रुबाई’ के रूप में भी किया गया है, जिसकी बानगी इन पंक्तियों के लेखक (मै स्वयं) द्वारा संपादित त्रैमा. ‘सरस्वती सुमन’ (देहरादून) के ‘मुरुक़ विशेषांक’ में देखी जा सकती है। उस बहुचर्चित विशेषांक में प्रथम बार इतने प्रयोगवादी मुक्तक, रुबाइयाँ एवं क़त्‍आत एक-साथ प्रकाशित हुए हैं। वरिष्‍ठ साहित्यकार श्री रामेश्‍वर काम्बोज ‘हिमांशु’ एवं डॉ. बिन्दु जी महाराज (भारत), डॉ. हरदीप कौर ‘संधु’ तथा भावना कुँवर (ऑस्ट्रेलिया), रचना श्रीवास्तव (अमेरिका) आदि के अतिरिक्त सुप्रसिद्ध कवि एवं समीक्षक डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ (फ़िरोज़ाबाद) के भी ‘हाइकु-मुक्तक’ यत्र-तत्र प्रकाशित देखे गये हैं।

यहाँ एक विशेष प्रयोग की दृष्‍टि से वरिष्‍ठ कवि एवं संपादक श्री रामेश्‍वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की एक रचना देखें, जो 5-7-5  के वर्णक्रम में 17 आक्षरिक त्रिपदकि छंद अर्थात्‌ ‘हाइकु’ के साथ ही मुक्तक/क़त्‍आत्‌ की छांदसिक कसौटी पर भी खरी उतरती है। उनका यह ‘हाइकु-मुक्तक’ शैल्पिक दृष्‍टि से ‘ग़ैर मुरद्‍दफ़’ कोटि में परिगणित है। इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण बिन्दु यह कि हाइकु-मुक्तक में कवि पर ‘हाइकु’ के साथ ही मुक्तक/क़त्‍आत्‌ के छंद-निर्वाह का दोहरा दायित्व होता है। यही कारण है कि ‘हाइकु-मुक्तक’ अपेक्षाकृत एक कठिन विधा है, जिसे हर हाइकुकार सहजतापूर्वक नहीं साध पाता है। जितने भी हाइकुकारों के ऐसे सृजन-प्रयास मेरे दृष्‍टि-पथ से गुज़रे हैं, उनमें से अधिकतर ‘हाइकु-मुक्तक’ के नाम पर विकलांग-प्रस्तुतियाँ ही दे सके हैं। निम्नांकित रचना में श्री काम्बोज जी ने हाइकु के साथ ही 26 मात्रिक छंद-विधान को बड़ी कुशलता से निभाया है-

      इस जग में/ कितनों ने समझी/ आँसू की बोली
      सबके आगे/ कितनों ने दुःख की/गठरी खोली
      क्या जाने कोई/दुख की गहराई/ दुखदायक
      चुपके से आ/ किसने जीवन में/मिसरी घोली!

इस लघु आलेख में स्थानाभाव के चलते ‘हाइकु-रुबाई’ का उदाहरण-सम्मत उल्लेख संभव नहीं हो पा रहा है, तथापि अब तक सिर्फ़ चार हाइकु-रुबाईकारों के नाम मेरे संज्ञान में हैं; यथा-  स्वामी श्यामानन्द सरस्वती ‘रौशन’,  श्री धनसिंह खोबा ‘सुधाकर’,  डॉ. मिर्ज़ा हसन ‘नासिर’ एवं श्री इब्राहीम ‘अश्क’।

उपर्युक्त से इतर सामान्य प्रचलित मुक्तक/क़त्‍आत में भी, ग़ज़लों की तरह ‘ग़ैर मुरद्‌दफ़’ चतुष्पदियों के बहुतेरे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं। सुप्रसिद्ध कवि डॉ. मधुसूदन साहा (उड़ीसा) के संग्रह ‘मुक्‍तक मणि’ (चयन एवं संपादन : जितेन्द्र ‘जौहर’) में शामिल एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है-

वक़्त कहता होंठ अपने आज खोलो
चल पड़ा है क़ाफ़िला तुम साथ होलो
बाहुबलियों से अगर यूँ ही डरोगे,
‘कल’ करेगा क्यों तुम्हें फिर माफ़ बोलो?

सुपरिचित कवि श्री दीपक ‘दानिश’ का यह क़ता/मुक्तक देखें, जिसमें चारों मिसरे/पंक्तियाँ परस्पर सुसम्बद्ध हैं। यहाँ पहली पंक्ति में जिस विषय को प्रवर्तित किया गया है, दूसरी पंक्ति ने उसमें एक नया आयाम जोड़ दिया है। आगे के क्रम में तीसरी पंक्ति एक आवश्यक बुनियाद खड़ी करने में सफल हुई है, जिस पर चौथी प्रभावपूर्ण पंक्ति काफी सरलता से टिक गयी है- 

उनसे शाख़ों पे इक तबस्सुम था
तिनके-तिनके में इक तरन्नुम था
शह्‌र से अब जो उड़ गये पंछी
शह्‌र उनके लिए जहन्नुम था।

उपर्युक्त चौपदी में यह भी ध्यातव्य है कि प्रथम पंक्ति ने विषय-प्रवर्तन के बावजूद कथ्य को पूर्णतः उद्‍घाटित नहीं किया है, बल्कि उसने एक पाठकीय जिज्ञासा जगा दी है। पंक्ति पुनः देखें- ‘उनसे शाख़ों पे इक तबस्सुम था।’ यहाँ प्रश्‍न उठता है कि ‘किनसे...तबस्सुम था?’ इसका उत्तर अभी अनुपलब्ध है। उत्तर की यह अनुपलब्धता की स्थिति द्वितीय पंक्ति में भी यथावत है, अर्थात्‌...यहाँ भी ‘पाठकीय जिज्ञासा’ अग्रसारित हो गयी है। जिज्ञासा के वशीभूत पाठक आगे बढ़ता है, तृतीय पंक्ति तक पहुँचकर उसे वांछित उत्तर प्राप्‍त हो जाता है- ‘पंछी’। अब रही बात चतुर्थ पंक्ति की, तो कहना होगा कि वह एक विशेष तेवर के साथ उतरी है...रूपकाभा लेकर। स्पष्‍टतः यह चौपदी हमारी पर्यावरणीय दशा को दर्शाने में एक बड़ी सीमा तक सफल हुई है, जिसमें ‘जहन्नुम’ शब्द अपनी केन्द्रीय भूमिका निभा रहा है। इन सब ख़ूबियों के बीच, शिल्प एवं प्रकार की दृष्‍टि से इस चौपदी को और भी विशेष बनाया जा सकता था,  एक लघु परिवर्तन के माध्यम से।

वरिष्‍ठ कवि डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ का एक मनभावन मुक्तक देखें, जिसमें मुक्तककार ने बिना कोई मात्रा गिराये अपने भावों-विचारों को अभिव्यक्त करने में सफलता पायी है। निःसंदेह यह मुक्तक हिन्दी के ‘विधाता’ छंद के समुचित निर्वाह का एक उत्कृष्‍ट उदाहरण है, जिसमें ‘यति-गति’ के निर्धारित विधान का भी पूरा ध्यान रखा गया है। इसे मैंने अपने स्तम्भ ‘तीसरी आँख’ (त्रैमा. ‘अभिनव प्रयास’) की एक क़िस्त में छंद के स-लक्षण उल्लेख के साथ सम्मिलित करते हुए लिखा था कि श्रृंगार-रस में आप्लावित डॉ. ‘यायावर’ के निम्नांकित मुक्तक में जहाँ मधुर चुम्बन की वाचालता है, तो वहीं उसके माधुर्य को अभिव्यक्त कर पाने की भाषागत असमर्थता भी...‘ज्यों गूँगे को गुड़’! यह मुक्तक पढ़ते ही मेरी स्मृति में कविवर त्रिलोचन आ गये...यह कहते हुए कि-  ‘भाषा के भी परे प्राण लहरें लेता है!’  यहाँ पंक्ति-चतुष्‍टय की भावगत सुसंबद्धता द्रष्‍टव्य है। साथ ही, यह भी कि तीसरी पंक्ति को कितनी कलात्मकता के साथ चौथी पंक्ति का सोपान बनाया गया है! बहरहाल मुक्तक का आनन्द लीजिए-

हृदय की पीर को कब कह, सकी संसार की भाषा
बहुत वाचाल चुम्बन के, मधुर उपहार की भाषा
हज़ारों गीत-ग़ज़लों में, नहीं है व्यक्त हो पाती
तुम्हारे रूप की भाषा, हमारे प्यार की भाषा।

वरिष्‍ठ कविवर श्री चन्द्रसेन विराट के व्यापक मुक्तक-संसार की बात ही निराली है। उनके अधिकांश मुक्तक शिल्प के सुन्दर सीप से ढलकर निकले प्रौढ़-परिपक्व भावों-विचारों के मनहर मोती हैं। अब तक के मेरे निजी संज्ञानानुसार हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक मौलिक मुक्तक-संग्रह (कुल पाँच संग्रह) प्रकाशित होने का गौरव उनके नाम के साथ जुड़ा है। आज जहाँ एक ओर तमाम कविगण स्वयं को ‘मुक्तक-महर्षि’ अथवा ‘मुक्तक-सम्राट’ आदि न जाने कितनी ही संज्ञाएँ देने में लेश-मात्र भी संकोच नहीं करते, वहीं दूसरी ओर कविवर विराट अपने सुविस्तृत ‘मुक्तक-संसार’ में मौन साधनारत रहकर ‘मुरुक़-प्रदेश’ के मुक्तक परिक्षेत्र को समृद्ध कर रहे हैं। उनकी एक चौपदी देखें, जो अपने सूक्तिपरक रूप में पाठकों के लिए उरग्राही हो गयी है-

विष को पीने की कला आती है
घाव सीने की कला आती है
दुख के अनुभव से गुज़रकर जग में
सुख से जीने की कला आती है।

किसी भी लघु आलेख में विषय को समग्रता में प्रस्तुत कर पाना प्रायः संभव नहीं हो पाता है। अतः इसमें मुक्तक के प्रकारादि से जुड़े अनेक महत्त्वपूर्ण बिन्दु छूट गये हैं, जिन पर चर्चा फिर कभी होगी।

- जितेन्द्र ‘जौहर’
आई आर-13/3, रेणुसागर, सोनभद्र (उप्र) 231218.
मोबा.  : +91  9450320472  
ईमेल:  jjauharpoet@gmail.com

26 comments:

  1. आदरणीय जौहर जी ...निसंदेह बहुत ही लाभदायक लेख ..आपकी कलम को प्रणाम .
    भावना तिवारी ,कानपुर

    ReplyDelete
  2. must say a very nice post.. keep the good work like to read more from you...

    ReplyDelete
  3. इस आलेख को पढ़ कर अपनी अज्ञानता पर खूब हँसी आई और ऐसा लगा कि शायद यह लेख मुझ जैसे अनाड़ी लोगों को मुक्तक लेखन की सही दिशा की ओर प्रेरित कर पाए. मुझे एक अज़ीम शायर की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं-
    कभी कभी हमने यूं भी अपने दिल को समझाया है
    जिन बातों को खुद नहीं समझे औरों को समझाया है.
    मुक्तक के स्थान पर शायद हम लोग "मुक्तक जैसा ही कुछ" लिख कर इतिश्री कर लेते हैं जो उचित नहीं कहा जा सकता. लेख से ज्ञान का प्रकाश फैलेगा, ऎसी आशा है.

    ReplyDelete
  4. जॊहर जी!मुक्तक के संबंध में बहुत स्टीक व सारगर्भित जानकारी दी है-आपने.धन्यवाद.

    ReplyDelete
  5. फ़ेसबुक पर प्रतिक्रियाओं एवं स्नेहाशीष की झलक प्रस्तुत है (जस-की-तस: Copy & Paste)-
    ॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒


    Deepak Shukla-
    Manyavar...

    Aapke aaklekh ko padhkar muktak, dohe v chhand ka bhed pata chala...aapka dhanyawad!!...

    Ek arse se main bhi likh raha hun... Char panktiyan swachhand likh din to unhen muktak samajh liya...aur agar laybadh likheen to chhand maana... Bas apne man ki baat ko saraltam shabdon main laybadh kar diya...voh chhand bana ya kavita athva geet, vyakarneey roop main mujhe eska gyaan nahi hai... Aap se marmagyon ki sharnagat hone ka akanksi hun...aasha hai aap mujhe yah samman dekar anugrahit karenge.....

    Ab tak jo main likhta aaya...
    Geet kahun, ya, main kavita..
    Muktak, chhand kahun kya enko..
    Gyaan nahi mujhko eska...

    Kabse maine chaha mujhko...
    Koi to marmagya mile...
    Trutiyan meri mujhe bataye...
    Kavita-vidha ka agya mile....

    Bin guru-gyaan nahi hai sambhav...
    Tarkash main chahe hon baan...
    Arjun kya Arjun ban paate...
    Agar guru na dete gyaan....

    Aaj aapse vinti meri....
    Mujhko apni sharan main len...
    Kavita gyaan adhura mera...
    Aap poorn esko kar den...

    Saadar...
    Deepak...

    _______________

    Geetanjali Geet
    nice post..........................
    बुधवार को 08:29 अपराह्न बजे · Unlike · 2


    जितेन्द्र जौहर
    Thanks a lot for your prompt reaction...Geetanjali Geet Ji.
    बुधवार को 08:37 अपराह्न बजे · पसंद · 2


    Abhi Tamrakar
    nice link to read...
    बुधवार को 08:45 अपराह्न बजे · Unlike · 2


    Geetanjali Geet
    I read your whole article where you have mentioned many examples of muktak possesing deferent writers like chandrsenviratji and others......thanx for this post
    बुधवार को 08:54 अपराह्न बजे · Edited · Unlike · 3


    Imran Ansari
    Naye likhne walo'n ke liye apka ye lekh bohat kaargar sabit hoga..
    बुधवार को 08:52 अपराह्न बजे mobile के द्वारा · Unlike · 2


    जितेन्द्र जौहर
    Cordial Thanks once again to Geetanjali Ji for going through the article thoroughly and for reciprocating. इमरान जी, आपको शुक्रिया कि आपने आलेख की उपयोगिता रेखांकित की। Abhi Ji...Thanks to U for reading.
    बुधवार को 08:58 अपराह्न बजे · Unlike · 2


    Abhi Tamrakar
    after reading the whole article must say ..you have illustrated the fact and proper use of bahr in muktak/qita... Example by Kavivar Badal saheb was the best... just have say a woww post.. very nice ofr new writers who are just not able to write good because they dont have suffice knowledge of the use of bahr...... Appluads sir for your work...
    बुधवार को 09:00 अपराह्न बजे · Unlike · 3

    ReplyDelete
  6. फ़ेसबुक पर प्रतिक्रियाओं एवं स्नेहाशीष की झलक प्रस्तुत है (जस-की-तस: Copy & Paste)-
    ॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒


    Geetanjali Geet
    respected jitendr jauharji,,,,,,,,you are requested to mention informative things here whenever you get time...thanx
    बुधवार को 09:10 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    Bhavana Tiwari
    आदरणीय जौहर जी,प्रणाम ..
    अत्यंत सारगर्भित आलेख ! निसंदेह मुक्तकों में मात्राओं का अत्यधिक महत्व है ..! हमारे जैसे समस्त नवोदित रचनाकारों हेतु पठनीय बहुत ही लाभदायक..!!
    बहुमूल्य,ज्ञानवर्धक ! जौहर जी की जौहर भरी लेखनी को प्रणाम ..!!
    बुधवार को 09:42 अपराह्न बजे · Unlike · 2


    जितेन्द्र जौहर
    Dear Abhi Tamrakar Ji, I'm indebted to you for your kindness of paying heed to the technical aspects of the article and managed to spare time to comment precisely on it.
    बुधवार को 10:10 अपराह्न बजे · Unlike · 3

    जितेन्द्र जौहर
    Resp. Geetanjali Geet Ji, I shall try to visit this grp more frequently as per my convenience. Thanks for your receptivity of quality.
    बुधवार को 10:13 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    जितेन्द्र जौहर
    आद. भावना तिवारी जी, आप समय-समय पर मेरे आलेखों/समीक्षाओं को अपनत्व देती रही हैं...मैं आपके सद्‌भाव के प्रति नत्‌ हूँ।
    बुधवार को 10:16 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    Bhavana Tiwari
    यह आपकी सहृदयता और गुरुता का प्रमाण है !
    साहित्यिक पत्रिका 'अभिनव प्रयास'में प्रकाशित होने वाली श्रंखला 'तीसरी आँख'को कौन नहीं जानता ?
    आप वास्तव में बधाई के पात्र हैं .!!
    आपका बहुत आभार .!!
    बुधवार को 10:24 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    जितेन्द्र जौहर
    कृपया अपना स्नेह-सद्‌भाव यूँ ही बनाये रखिए। मेरे लिए यही धरोहर है...पूँजी है...शक्ति है...इसी के बल पर अपनी बातें निष्पक्ष-निर्भीक रूप से ‘तीसरी आँख’ मे लिख पाता हूँ।
    बुधवार को 10:46 अपराह्न बजे · Unlike · 2


    Ansar Bijnori
    ..MOHTARAM apka ye mazmoon maktab e sher o sukhan ke talabaa ke liye nihayat mufeed hai...
    ...Jiske liye main apko dili mubarak bad pesh karta hun...
    ...jab tak sher o adab ko aap jaise rahnuma mayassar rahe'nge, ye gulshan e adab naye purane phoolo'n se mahkta rahega..
    बुधवार को 11:09 अपराह्न बजे mobile के द्वारा · Unlike · 3

    जितेन्द्र जौहर
    आद. Ansar Bijnori साहब, आपके विचारों ने मुझे ऊर्जा दी...मेरा हौसला बढ़ाया है। मुझे इसके लिए ‘शुक्रिया’ शब्द बहुत ‘हल्का’ लग रहा है। मोहब्बत बनाये रखें...भविष्य में यह श्रृंखला जारी रहेगी...सिलसिला बना रहेगा...! आभार...!
    गुरूवार को 12:06 पूर्वाह्न बजे · Unlike · 4

    Ansar Bijnori
    Hardik Swagat
    गुरूवार को 12:19 पूर्वाह्न बजे mobile के द्वारा · Unlike · 2

    Nira Rajpal
    JitenderJohar ji .. aapko dilse shukriya adaa karti aapke is lekhn le liye. bahut se naye writters ko seekhne mein madad karega .. jin mein se ek main bhi hoon. ek baar phie se shukriya adaa karti hoonregards
    गुरूवार को 12:48 पूर्वाह्न बजे · Unlike · 1

    जितेन्द्र जौहर
    आद. Nira Rajpal जी, आपकी विनम्रता मेरे लिए प्रणम्य है...आपको साधुवाद कि आपने इतना विस्तृत आलेख पढ़ने के लिए समय निकाला...मैं आपका कृतज्ञ हूँ! आभार...!
    गुरूवार को 12:59 पूर्वाह्न बजे · Unlike · 3

    गंभीर सिंह
    Adarniya Johar g.
    Aapne bahut upyogi jankari di.

    Ham jaise koshish karne walon ke liye yah atyavshyak hai.
    Tahedil se aapke shukrgujaar hain.
    Tamam group pariwar ki taraf se gujarish hai ki aap jitna ho sake is group me aisi barikiyon par roshni daalne ki kripa karenge.
    गुरूवार को 07:55 पूर्वाह्न बजे mobile के द्वारा · Unlike · 2

    ReplyDelete
  7. फ़ेसबुक पर प्रतिक्रियाओं एवं स्नेहाशीष की झलक प्रस्तुत है (जस-की-तस: Copy & Paste)-
    ॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒

    Bhardwaj Manu
    kya baat hai johar ji aapne is aalekh ke madhyam se is manch ko prn kar diya ye sab sawal yaha ke har shaks ke zahan me the kuch dosto ko pata hi nahi tha ki qata muktak hai kya dusri apke is lekh ne hamari post 1 aur post 2 ko bhi sabit kar dia ki kya fark hai waqai muktak ke itihas me apke ye alkeh ek meel ka pathhar hai aur hum koshish karenge apka ye alekh tab tak upar rahe jab tak muktak sambandhi apke naye alekh ka aarishiwad nahi milta apko pure pariwar ki taraf se koti koti naman
    गुरूवार को 10:12 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    जितेन्द्र जौहर
    मनु जी, मैं इस समूह के सम्मानित सदस्यों के अपनत्व पर क्या कहूँ...! अवाक्‌ रह गया हूँ। आपका हर ‘कार्य-संकेत’ शिरोधार्य है...! आज ही एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयी शोध-ग्रंथ के लिए प्यार-भरा आदेश मिला है कि एक 15-16 पृ. का शोध-पत्र लिखूँ...! तैयार होते ही उसे क़िस्तवार रूप में आपके इस मंच को भी सौपूँगा। कल से अनगिनत जिज्ञासाएँ आ रही हैं...मेरे इन्बॉक्स में। मैं सोचता हूँ कि सभी के प्रश्‍नो के उत्तर एक किताब के रूप में सौंप दूँ। कैसा रहेगा...मित्रो? खुलकर कहें। अपने-अपने प्रश्‍न भेजने केलिए स्वागत है सभी का...ईमेल बॉक्स में jjauharpoet@gmail.com
    गुरूवार को 10:43 अपराह्न बजे · Unlike · 3

    Manu Bhardwaj Manu
    hamare unwan aayojan ki jo pustak aa rahi hai usme aapka uprkot aalekh hume prakashit karne me bahut khushi hogi aur pustak sarthak ho jayegi yadi apki anumati ho to
    गुरूवार को 10:44 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    Manu Bhardwaj Manu
    aur muktak par ek alag se apki kitab ka mandvi prakashan me swagat hai aapki anumati se
    गुरूवार को 10:45 अपराह्न बजे · Unlike · 2


    जितेन्द्र जौहर
    मनु जी, यह आलेख आप अपने किसी भी साहित्यिक अनुष्‍ठान में उपयोग में ला सकते हैं। आपको पूरा अधिकार है। पुस्तक शीघ्र तैयार करूँगा। सभी मित्रगण/सदस्यगण कृपया अपनी-अपनी जिज्ञासाएँ मेरे ईमेल बॉक्स में भेजें...ताकि वह पुस्तक अधिकाधिक ग्राह्य और उपयोगी बनायी जा सके...समस्याओं के स्माधानों पर केन्द्रित करते हुए...यह एक अनूठी कृति बन सकती है।
    गुरूवार को 10:53 अपराह्न बजे · पसंद · 2


    Manu Bhardwaj Manu
    mai ailan kar deta hu aap apna email id yaha post kar den hum unme unki samasyane aur niwaran bhi prkashit karenge apka bahut bahut shukria johar jee aap na sirf yaha is manch ke judge hain balki ek sachhe kalamkar aur bahut nekdil insan hain jinhe pure grouo ki taraf se salam karta hu
    गुरूवार को 11:02 अपराह्न बजे · Unlike · 2


    जितेन्द्र जौहर
    ईमेल आईडी है- jjauharpoet@gmail.com
    गुरूवार को 11:12 अपराह्न बजे · पसंद · 1


    जितेन्द्र जौहर
    Bhavana Tiwari जी, आपने आलेख पढ़ने के साथ ही ‘जौहरवाणी’ ब्लॉग को Follow भी किया...इसके लिए आपको हार्दिक धन्यवाद।
    गुरूवार को 11:32 अपराह्न बजे · पसंद · 1

    Ansar Bijnori ! ! !
    4 घंटे पहले mobile के द्वारा · Unlike · 1



    ___________________


    Geetanjali Geet
    sarthak post,,,,,,,thanx
    बुधवार को 09:14 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    SP Sudhesh
    Jitendr ji aap ka lekh padha,khub pasand aya.Muktak pahle kavy ka ek bhed tha Jaise khand kavy aur maha kavy .Par Aj kal ise kavy ki ek shaili ya ek mukt chhand man liya gaya hai Jo anek chhandon men likha ja sakta hai.Vah Urdu ke qata se miltajulta Har
    6 घंटे पहले · Unlike · 1

    SP Sudhesh
    Hai par donon men antar hai.Qata ek chhand hai par muktak kisi chhand ka nam nahin hai.isliye muktak ko qata kahna thik nahin hai Doha muktak ya haiku muktak se main sahmat nahinhun.karan anek hain.inhen likhteihue form par hi dhyan rahta hai content par nahin.Kavita men kathy form se mahatv
    6 घंटे पहले · पसंद

    SP Sudhesh
    Purn hai,form to secondary hai.Mixhrit rupon ke Sthan par kisi chhand ya vidha par kushalta hasil karna behtar hai.
    6 घंटे पहले · पसंद

    ReplyDelete
  8. फ़ेसबुक पर प्रतिक्रियाओं एवं स्नेहाशीष की झलक प्रस्तुत है (जस-की-तस: Copy & Paste)-
    ॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒


    Piyush Dwivedi Putu
    श्रीमान जी मैंने लेख उसी दिन पढ़ लिया था जिस दिन आपसे दूरभाष पर वार्तालाप हुई थी।इसे पढ़कर एक विचार मिला कि मुक्तक सम-सम-सम-सम में तथा विभिन्न छंदों में भी लिखा जा सकता है।रोचक एवं ज्ञानवर्ध्दक लेख हेतु हार्दिक आभार तथा यही अनुरोध है कि आगे भी इस श्रृंखला को टूटने न दें ताकि मुझ जैसे पिपासुओं की पिपासा शांत होती रहे।आपसे उस दिन बात करके बहुत अच्छा लगा तथा आपका सरल स्वभाव मेरे दिल में घर कर गया।
    बुधवार को 08:08 अपराह्न बजे mobile के द्वारा · Edited · Unlike · 3

    जितेन्द्र जौहर
    आभार...Piyush...! आपने मन से पढ़ा...आपको उपयोगी लगा, मेरा श्रम सार्थक हुआ।
    बुधवार को 07:39 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    Raghunath Misra
    मैने उक्त विशेशांक मे आलेख देख कर प्रभावित होकर एक विस्त्रित अभिमत 'शब्द प्रवाह' मैन प्रकाश्नार्थ भेज दिया है. इसमे आप के आलेख पर विशेश फोकस है.सम-सम-विसम-सम के अलाव सम-सम-सम-सम के उद्धरन मुक्तक्कारोन के लिये शिक्शक का कर्य करेंगे- ऐसा विश्वास है. जौहर जी बधाइ.
    बुधवार को 08:13 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    जितेन्द्र जौहर
    आपका आभार...प्रेम की इस आह्लादकारी शीतल धारा के लिए...! जहाँ तक मैं आपका प्रश्‍न समझ सका हूँ, उसका उत्तर है- ‘ट’ के लिए Shift बटन के साथ t अक्षर दबाना है।
    बुधवार को 08:23 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    Raghunath Misra
    हार्दिक आभार- आत्मीयता से मार्ग्दर्शन हेतु.
    बुधवार को 08:25 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    Shailesh Veer
    muktak ke sandarbh mein aapke dwara kiye ja rahe kary etahasik dastavej banenge.....baat chahe muktak lekhan ki ho ya sampadan ki ya fir muktak sandarbhit aapke aalochanatmak evam gyanvardhak aalekhon ki.
    बुधवार को 09:42 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    जितेन्द्र जौहर
    शैलेश भाई...इसे मैं आपके शुभाशीष के रूप में स्वीकार रहा हूँ...समग्र हार्दिकता के साथ! मेरा हर संभव प्रयास यही कि कुछ बेहतर कार्य का निमित्त बन सकूँ
    बुधवार को 09:53 अपराह्न बजे · Unlike · 2

    Venus Kesari
    ज्ञानवर्धक लेख हेतु बधाई स्वीकारें.
    बुधवार को 11:05 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    जितेन्द्र जौहर
    Venus Kesari भाई, हार्दिक धन्यवाद कि आपने आलेख को समय दिया...!
    बुधवार को 11:11 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    Rahul Srivastava
    Umda aalekh. Aapko padhne me mera faayda hai. Bahut kuch sikhne ko milta hai. Aap tag karte hain, ye sone pe suhaga. Apna aashish banaaye rakhen.
    बुधवार को 11:55 अपराह्न बजे mobile के द्वारा · Unlike · 1

    जितेन्द्र जौहर
    Rahul Srivastava जी, बहुत-बहुत शुक्रिया...! यदि आप लोग यूँ ही मन से पढ़ते रहेंगे, तो मैं मन से लिखता रहूँगा। मेरे ‘जौहरवाणी’ नामक ब्लॉग से भी जुड़े रहें आप... आपका हार्दिक स्वागत है!
    गुरूवार को 12:02 पूर्वाह्न बजे · Unlike · 2

    Rahul Srivastava
    G zaroor.
    गुरूवार को 12:03 पूर्वाह्न बजे mobile के द्वारा · Unlike · 1

    Prem Lata Sharma
    bahut hi gyaan vardhak aur llbhdaayak jaankaari mili , bahut bahut shukriya..........
    गुरूवार को 06:00 पूर्वाह्न बजे · Unlike · 1

    Ganesh Dutt Misra
    bahut hi gyaan vardhak aur llbhdaayak jaankaari mili , bahut bahut shukriya..........
    गुरूवार को 10:52 पूर्वाह्न बजे · Unlike · 1

    Manoj Abodh
    badhai bhai !!
    गुरूवार को 01:52 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    Ganesh Dutt Misra
    As my Lap-Top is not loaded with Hindi, I get information in anolog form, I can read them here only.
    गुरूवार को 03:13 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    Ashwani Roy
    इस आलेख को पढ़ कर अपनी अज्ञानता पर खूब हँसी आई और ऐसा लगा कि शायद यह लेख मुझ जैसे अनाड़ी लोगों को मुक्तक लेखन की सही दिशा की ओर प्रेरित कर पाए. मुझे एक अज़ीम शायर की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं-
    कभी कभी हमने यूं भी अपने दिल को समझाया है
    जिन बातों को खुद नहीं समझे औरों को समझाया है.
    मुक्तक के स्थान पर शायद हम लोग "मुक्तक जैसा ही कुछ" लिख कर इतिश्री कर लेते हैं जो उचित नहीं कहा जा सकता. लेख से ज्ञान का प्रकाश फैलेगा, ऎसी आशा है.
    बीते कल 04:08 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    ReplyDelete
  9. एक सार्थक आलेख के लियें आपको बधाई..

    सहज सरल और सुंदर...
    आभार ..

    ReplyDelete
  10. गुरु जी जल्द ही कुछ मुक्तक आपकी नज़र के लिए पेश करुँगी ....:))

    माँ सरस्वारी की अपार कृपा है आप पर ......!!

    ReplyDelete
  11. गुरु जी जल्द ही कुछ मुक्तक आपकी नज़र के लिए पेश करुँगी ....:))

    माँ सरस्वारी की अपार कृपा है आप पर ......!!

    ReplyDelete
  12. jitender ji, aapki pratibha ko naman....Shayad hi koi aur lekhak aaj ke daur me itna karya kar raha hain vo bhi itna gahan jaankari dene wala. Hindi kavita gauravanvit hai aapke jaisa suyogya kalamkaar paakar....Parmatma aapko aur jyaada shakti de.....Meri bahut bahut shubhkamnayein.... DINESH RAGHUVANSHI, FARIDABAD.

    ReplyDelete
  13. ‘फ़ेसबुक वॉल’ से Copy & Paste (जस-की-तस प्रतिक्रियाएँ)-
    ॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒॒

    Ram Narayan Meena Haldhar :
    मुक्तक विधा पर आपका ये आलेख व्यापक ज्ञान वर्धक ,प्रेरणा दायक और प्रशंसनीय है,इसे पढ़ कर कई नई जानकारियां भी मिली जैसे- 'दोहा -मुक्तक' में असीम समभावनाएँ हैं, बधाई जितेन्द्र जी
    30 सितंबर को 02:27 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    Raghunath Misra :
    muktak par bhaai jauhar ka 'shabd pravah' mein aalekh dushyant ka sher yaad dilaa gayaa 'haathon mein angaare liye soch rahaa thaa, koi mujhe angaaron kee taaseer bataaye.
    14 अक्टूबर को 01:07 अपराह्न बजे · Unlike · 1

    Ravi Kedia :
    jitendra ji aaj aap ka lekh padh ker hum aasmaan se zameen per aa gaye aaj apne bare mein maloom hua ki kitna galat the hum aur muktak ka sahi matlab aur sahi kaise likha jaye wo bhi aaj maloom hua ..aap ka aabhaar..aap ke saath saath shri manu ji ka aabhaari hoon kyonki unhi ke aagrah per aap ne meri wall per ye post ki hai ...ek baar phir se aap ko aur manu ji ko dil se dhanyawaad...
    लगभग एक घंटा पहले · Unlike · 1

    Prahlad Pareek :
    bahut umda
    5 मिनट पहले · Unlike · 1

    ReplyDelete
  14. भाई जीतेन्द्र जौहरजी, इस लेख हेतु आभार.
    आज आपके लेख पर दृष्टि पड़ी है और सही कहिये मेरे मन के भाव आपके शब्दों में स्थान पाये दिख रहे हैं. मुक्तक को लेकर वस्तुतः पद्य-साहित्य में अव्यवस्था व्याप्त है. कवित्त/ घनाक्षरी को एक समय से हिन्दी पद्य में मुक्तक का दर्ज़ा हासिल है. इसपर भी विशेष प्रकाश की अवश्यकता है.
    सादर

    ReplyDelete
  15. Is bahu upyogi lekh ke liye haardik aabhar Aadarniye Jitendra ji !

    ReplyDelete
  16. Is bahu upyogi lekh ke liye aapka haardik aabhar adarniye Jitendra ji. Aasha hai aagey bhi ye shrankhla jaari rahegi.. Saadar aabhar va naman _/\_

    ReplyDelete
  17. Jauhar ji,
    Bahut hi sunder aur sargarbhit aalekh hai. Hamare jaise sahitya se door rahne vale logon ke liye bahut hi upyogi hai. Is sunder aalekh ke liye aapka dhanyabaad.
    Sudhir Vir

    ReplyDelete
  18. नि:संदेह ....जौहर जी ....आप के बहुउपयोगी ज्ञान के सहयोग से ...
    हमारे लेखन में और निखर आयेगा ऐसी आशा है .......
    सादर वन्दे ......_/\_

    ReplyDelete
  19. नि:संदेह ....जौहर जी ....आप के बहुउपयोगी ज्ञान के सहयोग से ...
    हमारे लेखन में और निखर आयेगा ऐसी आशा है .......
    सादर वन्दे ......_/\_

    ReplyDelete
  20. bahut sundar aalekh ke liye apka aabhari hun sir,,

    ReplyDelete
  21. जितेन्द्र जी ,आपका विश्लेषणात्मक और सारगर्भित लेख पढ़ा ...बहुत लाभान्वित हुई ..आशा है भविष्य में मुक्तक लेखन में और भी सजगता आयेगी ....बहुत -बहुत हार्दिक आभार ...

    ReplyDelete
  22. हार्दिक धन्यवाद ....बेहद ज्ञानपूर्ण उपयोगी लेख है आपका ...हमारे ज्ञानवर्धन में अवश्य सहायक होगा ........

    ReplyDelete
  23. जितेन्द्र जौहर जी ,
    आपके इस उपयोगी और सारगर्भित लेख के लिए आभारी हैं . निसन्देह आपके द्वारा दी गई जानकारी से हमें बहुत लाभ मिलेगा.
    सादर धन्यवाद एवं आभार.

    ReplyDelete
  24. उपयोगी और शास्त्रीय लेख । मेरे हाइकु मुक्तक का भी समावेश किया , एतदर्थ आभारी हूँ और प्रयास करूँगा कि हाइकु और मुक्तक दोनों के गुणधर्म का सही रूप में निर्वाह कर सकूँ।

    ReplyDelete