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साथी-संगम

Friday, May 13, 2011

रुबाई-३ :

काटे हैं शबो-रोज़ वो काले कैसे?
सीने में छिपा दर्द निकाले कैसे?
मत पूछिए विधवा ने भरी दुनिया में,
पाले हैं भला बच्चे तो पाले कैसे?
                                                               -जितेन्द्र ‘जौहर’
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शब्दार्थ : शबो-रोज़ = रात और दिन (दिन-रात)

Monday, May 2, 2011

रुबाई-२



जो सच है करो उसकी इबादत यारो!
औरों के हो जज़्बात की इज्ज़त यारो!
इंसान को इंसान अगर बनना है,
तो समझे वो जीवन की हक़ीक़त यारो!
                                    -जितेन्द्र ‘जौहर’