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साथी-संगम

Friday, October 26, 2012

कविता: ‘प्रेम-पत्र’

प्रिय मित्रो, 
      सृजन के किन्हीं भावुक पलों में हृदय छलक पड़ा...मैंने कुछ बूँदें काग़ज़ पर बटोर लीं...बाद में देखा तो इनमें कुछ बिम्बों...कुछ प्रतीकों...कुछ पौराणिक प्रसंगों...के अनेक सुचीह्ने अवयव दिखायी पड़े...! ...एक बात यह भी कि...‘मुक्तछंद’ होकर भी इस काव्याभिव्यक्ति का अपना एक व्यवस्थित शिल्प है...मेरा यथासंभव प्रयास रहा है कि...यह कविता ‘मुक्तछंद/छंदमुक्त’ के नाम पर प्रचलित ‘अधिकांश’ रचनाओं की तरह एक ‘कवितानुमा शब्द-संयोजन’...अथवा एक ‘बेतरतीब पेशकश’...या यूँ कहें कि...एक ‘अराजक काव्याभिव्यक्ति’ बनकर न रह जाय। मेरा प्रयास कितना सफल रहा, यह तो आप सभी पाठकगण बताएँगे...! बहरहाल...मेरे मन मे आया कि मैं इसे ‘जौहरवाणी’ के माध्यम से आप तक पहुँचाऊँ...! सो प्रस्तुत है- 

 प्रेम-पत्र 

आपका प्रेम-पत्र...
जैसे किसी वैभवशाली ‘अभाव-महल’ में
आकुल-व्याकुल
उर्मिला के समक्ष
किसी लक्ष्मण का
भावमय गृह-आगमन !
  •  
आपका प्रेम-पत्र...
जैसे किसी विस्मरण-गुहा में
उपेक्षित-तिरस्कृत
दमयन्ती के गिर्द
किसी निष्‍ठुर ‘नल’ की
सहृदय वापसी !
आपका प्रेम-पत्र...
जैसे किसी उत्तप्‍त मरुस्थल में
तृषावंत-क्लांत
मृग के सम्मुख
सहसा किसी नखलिस्तान का
आह्लादक प्राकट्य !
आपका प्रेम-पत्र...
जैसे किसी निर्जन-निर्तृण वनप्रांतर में
शाप-तापग्रस्त
प्रस्तर-शिला के शीश पर
किसी विरल बादल की
जीवन-जलवर्षा !

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- जितेन्द्र ‘जौहर’
पत्राचार:  IR-13/3, रेणुसागर, सोनभद्र (उप्र) 231218.
कार्यस्थल: अंग्रेज़ी विभाग, ए.बी.आई. कॉलेज।
मोबा. +91 9450320472
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