tag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post2187682672243383150..comments2022-11-03T14:22:11.742+05:30Comments on जौहरवाणी: ‘ईर्ष्या’ और उसकी की दो बहनें : Jealousy and Its Two Sistersजितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttp://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-58356012622399021832012-06-14T09:44:31.112+05:302012-06-14T09:44:31.112+05:30face book par samay dena vyarth k vivadon k sath m...face book par samay dena vyarth k vivadon k sath man me anavashyak tanav utpann karna lagta tha.jitendr ji sach to ye hai ki f.b.par aapse judkar net ki upyogita siddh huee hai.ab lagta hai ki samay ka sadupyog ho raha hai.achchhe lekh k liye badhaidr.rajeevrajhttps://www.blogger.com/profile/12036645254588066864noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-13705330421204424082010-10-30T00:32:30.386+05:302010-10-30T00:32:30.386+05:30bahut hee gahan chintan har shabd kee gahari vyakh...bahut hee gahan chintan har shabd kee gahari vyakhya ...kuch baaten to mere liye sarvatha nayi raheen... aapki post ne nayi baaten sikhayin...aapki tippani ne nayi urja di ...dhanyawaad aapkaस्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-28946761509346255322010-10-28T17:06:24.068+05:302010-10-28T17:06:24.068+05:30जीतेन्द्र जी,
इर्ष्या पर इतनी गहन विवेचना हो सकती ...जीतेन्द्र जी,<br />इर्ष्या पर इतनी गहन विवेचना हो सकती है,आपका लेख पढ़ कर जाना ! इतनी अर्थपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद !<br />-ज्ञानचंद मर्मज्ञ<br />www.marmagya.blogspot.comज्ञानचंद मर्मज्ञhttps://www.blogger.com/profile/06670114041530155187noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-36412579628523000122010-10-28T15:18:16.205+05:302010-10-28T15:18:16.205+05:30आपकी इस सुन्दर विवेचना ने चमत्कृत और मुग्ध कर लिया...आपकी इस सुन्दर विवेचना ने चमत्कृत और मुग्ध कर लिया...विषय की जितनी रोचक और शूक्ष्म विवेचना आपने की है कि इसमें और कुछ भी नहीं बच गया है जोड़ने लायक...<br />सच है कि सकारात्मकता आत्मिक उत्थान करती है ,परन्तु यदि इर्ष्य जैसे नकारात्मक भाव को भी व्यक्ति सकारात्मक ढंग से नियोजित करे तो यह व्यक्ति का आत्मिक विकास करते हुए जीवन सुखदायी बना सकती है... <br /><br />आभार आपका इस सुन्दर आलेख के लिए..रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-25316256348371806722010-10-28T14:06:22.709+05:302010-10-28T14:06:22.709+05:30very nice postvery nice postजयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-21654409331361703212010-10-26T14:07:17.177+05:302010-10-26T14:07:17.177+05:30मै श्री नारदमुनि जी का निम्नोद्धृत आशीर्वाद पाकर ध...मै श्री नारदमुनि जी का निम्नोद्धृत आशीर्वाद पाकर धन्य हुआ-<br />........................................<br /><br />नारदमुनि said...<br />bahut khub. aashirvad.narayan narayan<br /><br />25/10/10 10:05 AMजितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-40610632949755399952010-10-25T20:55:54.668+05:302010-10-25T20:55:54.668+05:30अच्छी विवेचना ,विस्तार पूर्वक जानकारी के लिये धन्य...अच्छी विवेचना ,विस्तार पूर्वक जानकारी के लिये धन्यवाद ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-2914013190059012042010-10-25T19:19:12.486+05:302010-10-25T19:19:12.486+05:30देवेन्द्र पाण्डेय जी,
कहीं पढ़ा था कि जो जितना अधि...देवेन्द्र पाण्डेय जी,<br />कहीं पढ़ा था कि जो जितना अधिक विद्वान होता है, वह उतना ही अधिक विनम्र होता है! इसका व्यावहारिक रूप आपके कथन से साफ़ झलक रहा है।<br />...........................<br /><br />हरकीरत जी,<br />आपके अपनत्व के लिए क्या कहूँ...? और हाँ...वो जो टेम्पलेट के लिए आपका निर्देश है तो मानना ही पड़ेगा, चलिए मैं एक Eye-drop ले आता हूँ। ...हाऽऽ हाऽऽ हाऽऽ<br />...........................<br /><br />आशा जी,<br />धन्यवाद! स्वागत है आपका, आती रहिएगा यूँ ही!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-88247121968164700852010-10-25T06:27:08.202+05:302010-10-25T06:27:08.202+05:30ईर्षा और उसकी बहिनों की जानकारी बहुत अच्छी लगी |बध...ईर्षा और उसकी बहिनों की जानकारी बहुत अच्छी लगी |बधाई <br />आपने मेरे ब्लॉग पर आकर प्रोत्साहित किया साधुवाद |<br />मैं भी पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूं |<br />एक बार फिर अच्छी जानकारी देती पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई |<br />आशाAsha Lata Saxenahttps://www.blogger.com/profile/16407569651427462917noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-74276641787467774082010-10-24T23:14:04.626+05:302010-10-24T23:14:04.626+05:30आद. डॉ. श्याम गुप्त जी,
नमस्कारम्!
‘जौहर’ की इस ...आद. डॉ. श्याम गुप्त जी, <br />नमस्कारम्!<br />‘जौहर’ की इस ‘छोटी-सी’ अंजुमन में आपका ‘बड़ा-सा’ स्वागत है! हार्दिक धन्यवाद कि आपने अपनी बात खुलकर रखी। आप जैसे विद्वान ने यदि उँगली उठायी है, तो ज़रूर कहीं कुछ गड़बड़ी होगी- या तो ‘कहने’ में... या फिर ‘समझने’ में।<br /><br />मैंने अपनी अँग्रेज़ी ग़ज़ल के जिस एक शे’र को यहाँ उद्धृत किया है, उसमें मैंने Grudge अर्थात् ‘ईर्ष्या’ को Scorpion यानी ‘बिच्छू’ का रूपक देकर सिर्फ़ यह कहने की चेष्टा/कोशिश की थी कि-<br /><br />‘ईर्ष्या’ एक ऐसा ‘बिच्छू’ है जो bearer अर्थात् धारक (यानी, जो इसे पालकर रखता है) को सबसे पहले ‘डंक’ मारती है। यहाँ Sting यानी ‘डंक मारना’ को सिर्फ़ अभिधार्थ तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। <br /><br />फिर आगे कहा है कि- Seldom यानी ‘कभी-कभी/ यदा-कदा’ दूसरों (अर्थात्, ईर्ष्यालु के लक्षित-जनों)को भी Bite यानी काटती है। <br /><br />मेरी विनम्र राय में, उक्त संदर्भित शे’र से ऐसा भाव तो कहीं नहीं उभर रहा है कि Scorpion दूसरों को नही काटता है। ...आपकी बात एकदम सही है कि ‘क्यों छोड़ेगा’ वह किसी को!<br /><br />समग्रतः ‘ईर्ष्यालु’ व्यक्ति अपने तमाम उपायों से निरंतर प्रयासरत रहकर किसी लक्षित व्यक्ति पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रहार करता रहता है, ईर्ष्या रूपी पोषित ‘बिच्छू’ को उस पर छोड़ता रहता है। उसके इन निंदनीय प्रयासों से उस लक्षित व्यक्ति को कोई नुकसान होगा ही, यह ज़रूरी नहीं है। <br /><br />हाँ...मगर यह तो तय है कि वह पाला गया बिच्छू ‘ईर्ष्यालु’ द्वारा जब-जब बाहर निकाला जाएगा, उस दौरान सबसे पहला ‘डंक’ उसी ईर्ष्यालु को ही झेलना होगा क्योंकि... ‘डंक’ मारना बिच्छू का स्वभाव है। <br /><br />..और एक सबसे ज़रूरी बात तो यह कि ‘ईर्ष्या’ का वह <br />सूक्ष्म ‘बिच्छू’ अन्दर-अन्दर निरंतर काटता/डंक मारता रहता है...किसे? ...धारक को, बिच्छू के पालनकर्ता को!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-73826287048777214962010-10-24T22:35:25.321+05:302010-10-24T22:35:25.321+05:30और हाँ टेम्पलेट कोशिश करुँगी जल्द ही बदलने की तब त...और हाँ टेम्पलेट कोशिश करुँगी जल्द ही बदलने की तब तक मिचमिचा कर पढ़ते रहे .....!!<br /><br />और प्रसून जी की जगह प्रतुल पढ़ा jaye .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-55155317621717456972010-10-24T22:22:49.291+05:302010-10-24T22:22:49.291+05:30कितना बेहतर होता , यदि inferiority (तुच्छता ) अपना...कितना बेहतर होता , यदि inferiority (तुच्छता ) अपना समय ,चिंतन और उर्जा किसी दुसरे की merit (उच्चता) का उपहास उड़ाने की बजाय अपनी ;तुच्छता' को 'उच्चता' में परिवर्तित करने में लगाती . आशय यही कि 'तुच्छता' निरर्थक निंदा करने में अपने समय -चिंतन- उर्जा का जो उपव्यय करती घूमती रहती है , वह सृजनात्मक न होकर . विनाशक है , बल्कि कहना चाहिए कि 'आत्म-विनाशक ' .....<br /><br /><br />जितेन्द्र जी,<br /><br /> बहुत अच्छे से आपने ईर्ष्या की विवेचना क़ी .... ईर्ष्या की दोनों बहनों असूया और पिशुनता को भी पहचाना ...प्रसून जी ने इसे और विस्तृत रूप दिया ....समझ सकती हूँ पिछले दिनों जो कुछ भी ब्लॉग जगत में हुआ उसके पीछे इन दोनों बहनों का ही हाथ रहा होगा .....आपका आभार ....इन सुर्पणखा जैसी बहनों से मिलवाने के लिए ...पहचान लिया है अगली बार ध्यान रखा जायगा ये हावी न होने पाएं .....!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-10530211134864422032010-10-24T22:21:34.123+05:302010-10-24T22:21:34.123+05:30This comment has been removed by the author.हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-3458300296584608782010-10-24T22:21:23.514+05:302010-10-24T22:21:23.514+05:30आज तो मैं ब्लॉग जगत में खुद को उस विद्य़ार्थि के रू...आज तो मैं ब्लॉग जगत में खुद को उस विद्य़ार्थि के रूप में पा रहा हूँ..जिसे एकसाथ कई विद्वानों का अनायास ही सानिध्य मिल जाय और वह अकबका जाय कि इतना ज्ञान किस गठरी में रखूं...शुक्र है कम्प्यूटर है..सब सहेज लेगा ।<br />..सुंदर व ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए आभार।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-48759184449036436952010-10-24T21:29:55.265+05:302010-10-24T21:29:55.265+05:30सुन्दर व्याख्या एवं और भी सुन्दर सुन्दर ग्यानपूर्ण...सुन्दर व्याख्या एवं और भी सुन्दर सुन्दर ग्यानपूर्ण टिप्पणियां. <br /><br />--जौहर जी ---अन्ग्रेज़ी की गज़ल कुछ जमी नहीं या शायद समझ में नहीं आई. scorpion तो दूसरों को भी काटता है , क्यों छोडेगा.मुझे भव-कथ्य की त्रुटि लगती है. shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-23447546436600730502010-10-24T19:55:40.225+05:302010-10-24T19:55:40.225+05:30बहुत कुछ नया है, बस ऐसे ही मिलता रहता है।बहुत कुछ नया है, बस ऐसे ही मिलता रहता है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-43309701616101095162010-10-24T16:38:37.302+05:302010-10-24T16:38:37.302+05:30उस्ताद जी एवं सुज्ञ जी,
Follow करने के लिए ‘धन्यवा...उस्ताद जी एवं सुज्ञ जी,<br />Follow करने के लिए ‘धन्यवाद’ दूँ तो आपके अपनत्व का अवमूल्यन ही होगा... अस्तु ‘मौनेव शोभनम्!’ आशा है कि आप इस मौन को बख़ूबी बाँच लेंगे...तथास्तु!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-1972239943602191832010-10-24T14:38:56.463+05:302010-10-24T14:38:56.463+05:30जितेन्द्र जी,
सुज्ञ ही रहने दो भाईजी, अन्यथा ज्ञान...जितेन्द्र जी,<br />सुज्ञ ही रहने दो भाईजी, अन्यथा ज्ञानार्जन की खिडकियां बंद हो जायेगी।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-69616382182675226512010-10-24T14:21:41.310+05:302010-10-24T14:21:41.310+05:30सुधीर जी,
आप पहली बार यहाँ आये हैं, स्वागत करता हू...सुधीर जी,<br />आप पहली बार यहाँ आये हैं, स्वागत करता हूँ...आते रहिएगा यूँ ही!<br />.....................<br /><br />मोनिका जी,<br />धन्यवाद, अब आपके इस सतत् अपनत्व को क्या कहूँ...? प्रणाम!<br />......................<br /><br />सुज्ञ जी,<br />‘जौहर’ की इस अंजुमन में आपका स्वागत है! प्रतुल जी के ब्लॉग पर आपके Sense of humour ने इतना लुभा लिया है कि मैं मुग्ध हो गया हूँ आप पर...एकदम फ़िदा...भाई जी!<br /><br />आप तो ‘सुज्ञ’ हैं...और ‘विज्ञ’ भी। यह ‘अनभिज्ञ’ आपको भला क्या ज्ञान दे सकेगा? तथापि आपकी विनम्रता को प्रणाम करता हूँ!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-36853891227687037822010-10-24T14:07:10.198+05:302010-10-24T14:07:10.198+05:30जितेंद्र जी,
बहूत ही सुंदर विश्लेषण, चर्चा को अवक...जितेंद्र जी,<br /><br />बहूत ही सुंदर विश्लेषण, चर्चा को अवकाश नहिं है।<br />ज्ञानार्जन की एक खिडकी और मिल गई।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-75463883436835632572010-10-24T11:43:55.471+05:302010-10-24T11:43:55.471+05:30बहुत सुंदर विश्लेषण ...... जानकारी परकबहुत सुंदर विश्लेषण ...... जानकारी परक डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-45828809522333049272010-10-24T11:41:57.317+05:302010-10-24T11:41:57.317+05:30आपने अपनी बातों का काफी तर्क पूर्ण ढंग से रखा है। ...आपने अपनी बातों का काफी तर्क पूर्ण ढंग से रखा है। डॉ. दिव्या श्रीवास्तव के ब्लाग पर चल रही बहस के संदर्भ में एक पोस्ट आज ही मैंने आपने ब्लॉग पर भी डाली है। <br />नफरत से पैदा करते हैं और पाक कहते हैं <br />http://sudhirraghav.blogspot.com/सुधीर राघवhttps://www.blogger.com/profile/00445443138604863599noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-75003830279619829092010-10-24T10:41:36.186+05:302010-10-24T10:41:36.186+05:30शरद कोकास जी,
धन्यवाद आपके इस प्रथमागमन के लिए, आत...शरद कोकास जी,<br />धन्यवाद आपके इस प्रथमागमन के लिए, आते रहिएगा!<br />.....................<br /><br />भारतीय नागरिक जी,<br />आभार कि आपने भी यहाँ पहली दस्तक दी। लेखन आपको पसंद आया,यह जानकर अच्छा लगना स्वाभाविक है।<br />......................<br /><br />अश्वनी रॉय जी,<br />आप शुरू से ही इतना प्यार देते आये हैं कि मैं आपके स्मरण-मात्र से ही आनन्दित होने लगता हूँ। आप सिर्फ़ ‘टिप्पणी देने के लिए’ टिप्पणी नहीं देते, बल्कि अपने निजी विचारों से कुछ-न-कुछ नया चिंतन-बीज बो कर जाते हैं। <br /><br />ऐसे मित्र/पाठक हर अच्छे ब्लॉग को मिलें...तथास्तु!जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauharhttps://www.blogger.com/profile/06480314166015091329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-87499874057594967632010-10-24T01:32:40.027+05:302010-10-24T01:32:40.027+05:30अब देखिये न मुझे भी आपका ब्लॉग पढ़ कर ईर्ष्या होने ...अब देखिये न मुझे भी आपका ब्लॉग पढ़ कर ईर्ष्या होने लगी है. काश मैं भी इतना सुन्दर लिख पाता. मगर क्या करूँ...आपके बराबर हमारे पास सामर्थ्य तो है नहीं. भला ऐसे में किसी को भी ईर्ष्या होने लगेगी. क्यों? है न? परन्तु आप जैसे गुनीजनों के लिए यह कोई चिंता का विषय नहीं हो सकता. एक कवि का तो यह भी कहना है कि निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाए...बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाए. अगर ईर्ष्यालु व्यक्ति में ऐसी क्षमता है तो भला उसे कौन नहीं चाहेगा? अब ईर्ष्यालु पर गौर करें तो पता चलता है कि अगर उसके पास योग्यता होती तो भला वह ईर्ष्या करने की बजाय स्पर्धा में भाग लेता. परन्तु ऐसा भी नहीं है. उसके पास तो एक ही योग्यता है जिसका प्रदर्शन वह आसानी से कर रहा है. अगर नक़ल करने से अक्ल की बचत होती हो तो भला कौन चूकेगा? मगर ये तो सोचने वाले की सोच पर निर्भर करता है कि अपने प्रतिद्वंदी को कैसे नीचा दिखाए.आजकल लोग केवल ईर्ष्या के बारे में ही अधिक जानते हैं उसकी दोनों बहनों तक ईर्ष्यालु कहाँ जायेगा? क्योंकि उसे तो सभी से ईर्ष्या होती है फिर चाहे वो उसकी बहनें ही क्यों न हों.अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Royhttps://www.blogger.com/profile/01550476515930953270noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4511934913972494330.post-83681288032147026362010-10-23T23:44:59.994+05:302010-10-23T23:44:59.994+05:30इतना अच्छा लिखा है कि मैं आश्चर्य में पड़ गया. जो ज...इतना अच्छा लिखा है कि मैं आश्चर्य में पड़ गया. जो ज्ञान पुस्तकों से भी नहीं प्राप्त हो सकता वह ब्लाग जगत में आसानी से मिल जाता है.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.com