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साथी-संगम

Tuesday, November 16, 2010

क्षणिकाएँ

-1-
दूरियाँ 

मज़दूर,
मजबूर है...!

मालिक,
मग़रूर है...!

दौलत के नशे में चूर है!
इसीलिए
मज़दूर से दूर है!


-2-
नशा

दौलत में-
‘शान’ नहीं,
‘नशा’ है...!

‘नशा’ में-
‘नाश’ है...!

नशेड़ी,
एक चलायमान
लाश है...!


 -जितेन्द्र ‘जौहर’